________________
चतुर्दशजीवमेदस्वरूपम. (१७) विस्तरार्थ:-गाथामां कहेला जीवना १४ भेदनो अनुक्रम ( अनुक्रमे १४ भेद) आ प्रमाणे के १ अपर्याप्सा सूक्ष्म एकेन्द्रिय. ८ पर्याप्ता त्रीन्द्रिय. २ पर्याप्ता सूक्ष्म एकेन्द्रिय. ९ अपर्याप्ता चतुरिन्द्रिय. ३ अपर्याप्ता बादर एकेन्द्रिय. १० पर्याप्ता चतुरिन्द्रिय. ४ पर्याप्ता बादर एकेन्द्रिय. ११ अपर्याप्ता असंशि पंचेन्द्रिय. ५ अपर्याप्ता द्वीन्द्रिय. १२ पर्याप्ता असंज्ञि पंचेन्द्रिय.
६ पर्याप्ता द्वीन्द्रिय. . १३ अपर्याप्ता संज्ञि पंचेन्द्रिय. । ७ अपर्याप्ता त्रीन्द्रिय. . १४ पर्याप्ता सहि पंचेन्द्रिय...
उपर कहेला १४ भेदमां सर्व संसारी जीवोनो समावेश थइ - के छ, अर्थात् ए १४ भेदयी व्यतिरिक्त (भिन्न-जुदो) कोइपण संसारवर्ती जीव नथी. ए १४ भेदमा जे जीवो (६ ही गाथामां कहेवाशे तेवा स्वरुपवानी ) स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण कर्या विना मरण पामे ते अपर्याप्ता,अने स्वयोग्य पर्याप्तिओ पूर्ण करीनेज मरण पामे ते पर्याप्ता जीवो कहेवाय छे. सूक्ष्म एकेन्द्रियादिकनुं स्वरूप अन्य स्थले विस्तृत छे तोपण अति संक्षेपथी कहेवाय छे. आ सिवाय बीजा पण ३२-५६३ विगेरे भेदो थाय छे जे परिशिष्टयी देखवा..
जे एकेन्द्रिय जीवो (अर्थात एकेन्द्रियजीवोनां शरीर)घणाएकव थया छतां पण चक्षुगोचर (दृष्टिगोचर) अथवा कोइपण इ न्द्रियने ग्राह्य (इन्द्रिय गोचर ) न थइ शके तेवा सूक्ष्मनामकर्मनाउदयवाळा एकेन्द्रिय जीवो सूक्ष्मएकेन्द्रिय कहेवाय छे. आ जीवो चौद राज प्रमाण लोकमां (आखा जगतमां) सर्वत्र रहेला छे. अर्थाः व सकल विश्वमां एवी कोइ पण जग्या नथी के ज्यां सूक्ष्म एकेन्द्रियो न रह्या होय. ए जीवो सूक्ष्म होवाथी कोइ पण इन्द्रिय द्वाराजाणी शकाता नथी, परन्तु सर्वज्ञोक्त सिद्धांतोमा तेओर्नु अस्तित्व (विद्यमानता) कहेल होवाथी आपणे मानवा योग्य छे के जगत