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श्रीनवतत्वविस्तरार्थः
........ ॥ संस्कृतानुवादः॥ एकेन्द्रियाः सूक्ष्मेतराः, संज्ञीतरपंचेन्द्रियाश्च सद्वित्रिचतुः ।। अपर्याप्ताः पर्याप्ताः, क्रमेण चतुर्दश जीवस्थानानि ॥४॥
शब्दार्थ. एगिदिय-रकेन्द्रिय जीवो. बि-दीन्द्रिय.
ति-त्रीन्द्रिय. 'इयरा-बादर. . चउ-चतुरिन्द्रिय. समि-संजिपंचेन्द्रिय. अपजत्ता-अपर्याप्ता. इयर-असंज्ञिपंचेन्द्रिय. पज्जत्ता-पर्याप्ता. (पणिदिया-पंचेन्द्रिय) कमेण-अनुक्रमे. य-अने, तथा.
चउदस-चौद. स-सहित.
जियहाणा-जीवना भेद. गाथार्थ:-सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, तथा द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय, अने चतुरिन्द्रिय सहित संज्ञिपंचेन्द्रिय तथा असंज्ञि पंचेन्दिय ए साते अपर्याशा अने साते पर्याप्ता गणतां अनुक्रमे १४ जीवभेद थाय.
१-२ श्रीजी गाथामां " इयरेहिं " शब्दनो अर्थ " स्थावर वडे " कहेल छे अने आ गाथामां इयरा तथा इयरना अर्थ जुदा जुदा करा तेर्नु कारण ए छे के:
इयर-इतर शब्द जे नामने जोडायलो होय ते नामथी विपरित अर्थ थाय छे, जेमके सूक्ष्मनु इतर बादर, स्थावरनुं इतर प्रस, संचिर्नु इतर असंज्ञि, पर्याप्तनुं इतर अपर्याप्त, अने लघुर्नु इतर गुरु इत्यादि रीते इयर-इतर शब्दनो अर्थ प्रतिपक्ष (वि. परीत ) करतो.