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नानाविधजीवभेदस्वरूपम्, (१५) स्पर्श-जीव्हा-नाक-चक्षु--अने कान ए पांच इन्द्रियो वाळा पण छे, ए हेतुथी संसारीजीवो एकेन्द्रिय-बीन्द्रिय-वीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियअने पंचेन्द्रिय एम पांच प्रकारना पण गणी शकाय.. ___ अथवा संसारी जीवोमां केटलाएक जीवो पृथ्वीकाय ( पृथ्वी रूप देहने धारण करनारा ) छे, केटलाएक अपकाय (जळ-पाणी रूप देहने धारण करनारा ), केटलाएक तेजस् (अग्नि रूप शरीरने धारण करनारा ), केटलाएक वायुकाय ( वायु-हवारूप देहवाळा ) केटलाएक वनस्पतिकाय ( वनस्पति रूप देहवाळा), अने केटलाएक जीने त्रसकाय (सनामकर्मना उदयथी गमन शक्तिवाली देहने धारण करनारा) होवाथी जीवो छ प्रकारना पण गणी शकाय.
शिष्य-बीजी गाथामांकहेलाउद्देश प्रमाणे जीवना १४ भेद दविवाने बदले आ विचित्र रीते जीवना ६ भेद दर्शाव्या ते शृं? . गुरु-हे जिज्ञासु जीवनाजे १४ भेद सामान्यथी बीजी गाथामां कह्या छे ते आगळनी ४थी गाथामां विशेषतः कहेवाशे, परन्तु अत्रे तो प्रसंगोपात्त जुदी रीते६ भेद दर्शाव्या छे. वळी आ गाथामां दर्शाव्या प्रमाणे जीवो जुदी जुदी रीते ६ प्रकारना छ एटलुंज नहिं परन्तु एथी पण अधिक सात प्रकारना, आठ प्रकारना, नव प्रकारना इत्यादि अनेक प्रकारना छे, जे प्रज्ञापनादि सिद्धांतर्थी जाणवा योन्य छे.
अवतरण--पूर्व गाथामां जुदा प्रकारे जीवभेद कहीने हवे आ गाथामां (बीजी गाथाना उद्देश प्रमाणे ) जीवना १४ भेद कहछे.
मूळ गाथा ४ थी. - एगिंदिय सुहुमियरा, सन्नियरपणिदिया य सबितिचऊ॥ अपजत्ता पजत्ता, कमेण चउदस जियट्ठाणा ॥१॥