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________________ श्रीनवतत्वविस्तरयः । होचायी जीवो ६ प्रकारका पण छे. विस्तरार्थ:--सर्व जीयो चैतन्य लक्षण युक्त होवायी (चैतन्य लक्षण रूप भेदवडे सर्व जीवो) एकज प्रकारना छे, परन्तु केटलाएक जीवो चैतन्य लक्षणयुक्त अने केटलाएक जोवो चैतन्य लक्षण रहित एम वे प्रकारना जीवो नथी, माटे सर्व जीवो चैतन्य लक्षणवडे एकज प्रकारना छे. लब्धिअपर्याप्ता सूक्ष्मैकेन्द्रिय जेवा जघन्य जीवोमां पण ज्ञान मात्रा अनन्तमा भाग जेटली सदाकाळ होयज छे. जेनुं स्वरूप आगळ कहेवाशे. " अथवा संसारी जीवोमों केंटलाएक जीवो वस (त्रास-भय पामी एक स्थानथी बीजे स्थाने गमन करनार ) छे, अने केटलाएक जीवो स्थावर (भय पामीने पण स्थानान्तर जवाने अशक्त) छे, अहिं अग्नि अने वायु गतिवडे त्रस छे पण वास्तविक रीते स्थावरछे ए हेतुथी संसारी जीवो त्रस अने स्थावर एम बे प्रकारना पण गणी शकाय छे.. ' अथवा संसारी जीवोमा केटलाएक पुरुषवेद (स्त्री उपर अभिलाप ) वाळा, केटलाएक जीवो स्त्रीवेद वाळा ( पुरुष उपर अभिलाप वाळा ), अने केटलाएक जीवो नपुंसकवेदवाळा (स्त्री अने पुरुष एपने उपर अभिलाषवाळा) होवाथी संसारी जीवो पुरुषवेदी, स्त्रीवेदी, अने नपुंसकवेदी एम त्रण प्रकारना पण गणी शकाय. ___ अथवा संसारी जीवोमां केटलाएक देव, केटलाएक मनुष्य, केटलाएक तियेच, अने केटलाएक नारक होवाथी गतिभेदे (देवादिक गतिना भेदवडे) संसारी जीवो चार प्रकारना पण गणी शकाय. ___अथवा संसारी जीवोमां केटलाएक जीवो मात्र एक स्पर्श इन्द्रियवान, केटलाएक स्पर्श अने जीव्हा ए वे इन्द्रियवाळा, केटलाएक स्पर्श-जीव्हा-अने नाक ए त्रण इन्द्रियोवाळा, केटलाएक स्पर्शजीव्हा-नाक अने चक्षु ए चार इन्द्रियवाळा, अने केटलाएक जीवो
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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