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________________ नानाविधजीवभेदस्वरूपम्. (१३) कहीने हवे आ गाथामां जुदी जुदी अपेक्षाएप्रथम जीवतत्वना भिम भिन्न भेद (आगल ४ थी गाथामां कहेवाता १४ भेदयी) शुदे प्रकारे कहेवाय छे. मूळगाथा ३ जी एगविह दुविह तिविहा, चउबिहा पंचछविहा जीवा॥ चेयण तसइयरेहिं, वेय-गई-करण-काएहिं ॥ ३॥ ॥संस्कृतानुवादः ॥ एक विधद्वि विधत्रिविधा, श्चतुर्विधाः पंचषविधा जीवाः॥ चेतनत्रसेतरै-र्वेदगतिकरणकायैः ॥३॥ ___ शब्दार्थः एगविह-एक प्रकारना चेयण-चेतन(ए एकज मेद वडे) दुविह-बे प्रकारना तस-त्रस ( अने) तिविहा-त्रण प्रकारना इयरेहि-स्थावर वडे चउबिहा-चार प्रकारना वेय-वेद( ना भेद वडे) पंच (विहा)-पांच प्रकारना गइ-गति( ना भेद वडे) छबिहा-छ प्रकारना करण-इन्द्रिय( ना भेद वडे) जीवा-जीवो काएहिं-काय ( ना भेद बडे ) गाथार्थ-सर्वे जीवो चेतन (चैतन्य लक्षण युक्त ) होवाथी एकज प्रकारना छे, अथवा ( आ जीवतत्वमा सर्वत्र संसारी जीवोनो विचार करेल होवाथी सिद्ध जीव सिवायना) सर्वे जीवो त्रस अने स्थावर एबे भेदमा अंतर्गत होवाथी २ प्रकारना छे, अथवा सर्वे जीवोनो त्रण वेदमा समावेश थतो होवाथी ३ प्रकारना छ, अथवा सर्व जीवो गतिना चार भेदमा अंतर्गत होवाथी ४मकारना छ, अथवा सर्वे जीवो इन्द्रियोना ५ भेदमां अंतर्गत होवाथी ५ प्रकारना छ, अथवा सर्वे जीवनो छ कायमा समावेश थतो
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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