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चतुर्दशजीवमेदस्वरूपम्.
य जीवो छ, अने ते मात्र बादर ज होवायी सूक्ष्म बीन्द्रिय अने बादर बीन्द्रिय एवा बे भेदवाळा नथी, एज प्रमाणे आगळ त्रीन्द्रियादि जीवो पण सर्वे एक बादर भेदवाळाज छे परन्तु सूक्ष्म नथी.
शिष्य-दीन्द्रियादिजीवोबादरज होय छे, एम केम कहेवाय ? कारणके ए जीवो एवा सूक्ष्म पण होय छे के जे चक्षुथी देखी शकाता नथी, पण सूक्ष्मदर्शक यंत्रनी मददथी देखी शकाय छे, वळी एथीपण वधु सूक्ष्म होवानो संभवछे के जेओ सूक्ष्मदर्शकनी मददथी पण देखी शकाय नहिं, तो तेवा अतिवारीक द्वीन्द्रियादि जंतुओनो संभव होगाथी द्वीन्द्रियादि जीवो सूक्ष्म पण केम न कहेवाय ! ____ गुरु-हे जिज्ञासु? तेवा अतिबारीक जंतुओ लोकव्यवहारमा भले सूक्ष्म कहेवाय, परन्तु वास्तविक रीते तो सूक्ष्मनामकर्मना उदय वाळा अने जे अनेक जंतुओनां देहपुद्गलो एकत्र पिंडित यया छ तां पण न देखी शकाय ते जीवो सूक्ष्म गणी शकाय छे. अने दीन्द्रियादि जीवो तो एवा छे के तेओनां देहपुदलोने घणा प्रमाणमां एका पिडित करतां अवश्य चक्षुआदि इन्द्रियने ग्राह्य थइ सके छे मारे नेवा जीवो अत्रे सूक्ष्म तरीके गणी शकाता नथी.
तथा गधइया-धनेरीयां-येळ-मांकड-जू-कुंथुआ-कीडी-मकोडावीमेल इत्यादि त्रीन्द्रिय जीवो छ - तथा भ्रमर-विच्छु-बगाइ-करोळीआ-कंसारी-तीड-इत्यादि चतुरिन्द्रिय जीवो छे. ... तथा मातपिताना संयोग विना जगदिक सामग्रीथी एकाएक उत्पन्न थनारा देडका-सर्प-मच्छ इत्यादि.तिर्यंच पंचेन्द्रियो, अने म. नुष्यना मळमूत्रादि (१४) अशुचि पदार्थोमा उत्पन्न थता समुछिम मनुष्यो सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय कहेवाय , पुनः ए समूर्छिम