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नवतत्व संक्षेपस्वरूपम्.
ध ए चार तत्व जडपदार्थना ( पुगलना ) विकार रूप होवाथी अ. जीव छे, अने अजीव तो अजीव छेज, ए प्रमाणे ५ तत्त्व अजीवस्वरूप छे.
९ तत्त्वोमा रुपी अरुपी विभाग. नववत्वमां जीव देहधारी होवाथी रूपी छे, तथा संवर निजरा अने मोक्ष ए त्रणे जीवना परिणाम रूप होवाथी अरूपी छ, तथा पुण्य, पाप, बंध, अने आश्रव ए चारे जडनो (पुद्गलनो कर्मरूप) विकार होवाथी रूपी छे, अने अजीवना केटलाएक भेद रूपी अने केटलाएक भेद अरूपी (२ जी गाथाना विवरणमां कहेवाशे ते प्रमाणे स्कंध-देश-प्रदेश-ने परमाणु ए चार पुद्गलना भेद रूपी छे, अने शेष १० भेद अरूपी) छे माटे अजीवतत्त्व रूपी अरूपी छे.
९ तत्त्वोमां हेय ज्ञेय अने उपादेय. नवतत्त्वमां जीव ने अजीव ए बे तत्त्व ज्ञेय-जाणवा योग्य छे. कारणके ए बे तत्त्वनो आदर अथवा त्याग थइ शकतो नथी, तथा पाप आश्रव बंध ए त्रण तत्व आत्मगुणने आच्छादन करनार ( ढांकनार-प्रकाशित नहि थवा देनार ) होवाथी हेय-त्याग करवायोग्य छे. तथा संवर निर्जरा अने मोक्ष ए त्रण तत्त्व आत्मगुणंने प्रगट करनार होवाथी उपादेय-आदरवायोग्य छे. तथा पुण्यतच ए सुवर्णनी पण बेडी सरखं होवाथी वास्तविक रीते त्याग करवायोग्य छे, तोपण आत्मगुणने प्रगट करवामां ( मोक्षमार्गमां चालता मुमुक्षु जीवोने ) सहायरूप (वळावा सरखं) होवाथी उपादेय ज गणाय छे. " प्रश्न-संवरादितत्त्व जीवस्वरूप होवाथी ज्ञेय, अने आश्र