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श्रीनवतस्त्वविस्तरार्थः
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सम्यगद्रष्टि जीव जेटली निर्जरा करे छे तेनाथी नवो कर्मबंध अति अल्प करी शके, अने मिथ्याष्टि जीव तो निजरा अल्प करे अने नवीन कर्मबंध घणोज करे जेथी सर्वकर्मक्षयनो अवसरज न मले, माटे जेमां अल्पकर्मनो बंध छे अने घणा कर्मनी निर्जरा छे एवी सम्यग्दृष्टिनी सकाम निर्जरा ज सर्व कर्मनो क्षय करनारी (मोक्ष प्राप्तिमां कारणवाळी ) होवाथी निर्जरा तरीके गणी शकाय. ७ ____ जीवनी साथे कर्मोनू जे परस्पर मली जवुबंधावू ते द्रव्यबंध, अने ते कर्मोंने बांधवामां कारणरुप जीवनो जे रागद्वेषयुक्त परिणाम ते भावबंध कहेवाय, अने ए बंधनुं जे लक्षण भेदादि स्वरूप ते बंधतच कहेवाय. लोखंडना गोंळामां अग्नि जेम प्रवेश करीने रहे छे, तेम कर्मना अणुओ पण आत्मामां प्रवेश करीने रहे छे. ८ - आत्मानी साथे लागेलां सर्व कर्मोनो जे सर्वांशे संपूर्ण क्षय थवो ते द्रव्यमोक्ष, ते कर्मोंना कारणरूप रागद्वेषादिनो जे साशे संपूर्ण क्षय थवो ते भावमोक्ष, अने ए मोक्षनुं जे लक्षण भेदादि स्वरूप ते मोक्षतत्त्व कहेवाय. ९
उपर बतावेला स्वरूपवाळा नवतच्चो जे प्रमाणे सिद्धान्तो तथा ग्रन्थोमां वर्णव्या छे ते प्रमाणे जाणवायोग्य छे, कारणके तेनुं ज्ञान सम्यकत्व स्थिरता तथा शुद्धिनुं परमकारण छे.
९ तत्त्वोर्मा जीवाजीव विभाग. नव तत्त्वमां जीवतत्व युक्त होवाथी जीवतत्त्व, तथा जीवगुणने ( आत्माना गुणने ) प्रगट करनार होवाथी संवर निर्जरा अने मोक्ष ए चार तत्त्व जीवस्वरुप छे. अने पुण्य--पाप--आश्रव--ने बं