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नवतत्वसंक्षेपस्वरूपम्,
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नथी, त्याग करवा योग्य
नयी -,,
२ पापानुबंध पुण्य - सुख' के अने
३ पापानुबंधि पाप - सुख' नयी अने
४ पुण्यानुबंधि पाप - सुख' नथी अने छे
जीवोमां कर्मनुं जे आव ते द्रव्य आश्रव, अने कर्म आववा - मां कारण रूप जे जीवनो रागद्वेषयुक्त परिणाम ते भाव आश्रव, अने ए आश्रवनुं जे लक्षण भेदादि स्वरूप ते आश्रव तत्व कहेवाय. अहिं " आश्रव " ए शब्दनो अर्थ " आवकुं " थाय छे. आ आश्रम पुण्यत अने पाप तच्चनो पण समावेश थइ शके छे. कारण शुभ कर्मनुं आवकुं ते शुभाश्रव एज पुण्य, अने अशुभ कर्मनुं आवकुं ते अशुभाश्रव एज पाप कहेवाय छे. ए प्रमाणे वे तनो समावेश करवाथी सर्व तच्च सात छे एम पण शास्त्रोमां कहेलुं छे. ५
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आदरवा योग्य
जीवमां आवतां कर्मोनुं जे रोकावुं ( संवर-- रोका, अटकवं, ए अर्थथी ) ते द्रव्य संवर, अने आवतां कर्मोने रोकवामां कार• रुप जे जीवनो शुद्ध अध्यवसाय ( भाव -- परिणाम ) ते भाव संवर, अने ए संवरनं जे लक्षण भेदादि स्वरूप ते संवरतस्व कहेवाय. ६
कर्मोंनो जे देशथी ( अल्पांशे ) क्षय थवो ते द्रव्यनिज्र्जरा, अने कर्मोंनो देशथी क्षयं करवामां कारणरूप जीवनो जे विशुद्ध अध्यवसाय ते भाव निर्जरा अथवा सम्यगदृष्टि जीवनी ( सर्वज्ञ कथित तवज्ञान पर संपूर्ण प्रतीति-- श्रद्धावाळा जीवनी) जे. निज्र्जरा ते सकाम निर्जरा, अने मिथ्यादृष्टि जीवनी ( सर्वज्ञ कथित तत्वज्ञान पर अल्पांशे पण अप्रतीतिवाळा जीवनी) जे निर्जरा ते अकाम निर्जरा. अहिं चालु प्रकरणमां सकाम निर्जराज निर्जरा तरीके गणवी योग्य छे, कारण के
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