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... ॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ [३४१] ते अने बीजा अनेक गणधरो तथा जीवो पुरुषलिंगे सिध्ध थयाछे. ___ गांगेय विगेरे नपुंसकलिंगे सिद्ध थया छे. अहीं नपुंसक ते कृत्रिम नपुंसक समजाय छे कारण जाति नपुंसकने मुक्ति होय नही तेम घणे स्थले देखाय छे, ___ तथा करकंडु वगेरे जेओ वृषभादिक बाह्य निमित्तवडे वैराग्य पामी मोक्षे गया ते प्रत्येकबुद्धसिद्ध, अहिं करकंडुनु संक्षिप्त स्वरूप आ प्रमाणे-चंपा नगरीना दधिवाहन राजाने चेडा राजानी पुत्री पद्मावती नामनी स्त्री हती तेना गर्भनो दोहद पूग्वाने राजा स्त्रीसहित हस्ती पर बेसी वनमां गयो ते वखते प्रथम दृष्टि थवाथी पृथ्वीमाथी गंध ऊछळवाने लइने मदमां आवेला हस्तिना नाशवाथी राजा वडवृक्षनी वडवाइए लटकी त्यांथी पोताने नगरे आव्यो अने राणी वडवाइने पकडी शकी नही, हाथी तृषातुर थवाथी चालता चालतां घणे दूर एक मोटा अरण्यना तलावमा पेठो राणी अवसर जोइ हाथी उपरथी उतरीने तलावने कांठे आवी अने सागारिक अणसण करी वनमां चालतां पोताना पिताना भाइ तापसे नगरमा पहोंचाडी अने कामभोगथी निर्वेद पामेली राणीए साचीनी पासे जइ दीक्षा लेवानी इच्छाथी गर्भ विनानो वधो पोतानो वृत्तान्त कही दीक्षा अंगीकार करी. त्यारबाद प्रसव समय नजीक आव्याथी गुरुणीने छूपी रीते पोतानी वात जणावी, अने
१ अहीं गांगेय नामथी भिष्म पितामहनी प्रसिद्धिछे,पण तेतो " पांडवचरित्र" विगेरेमा बारमे देव लोके गया छे, वली श्री भगवतीजीना नवमा सातकमां भंगजालादि प्रश्नो पूछनार गांगेयमुनि छे, परन्तु तेमने नपुंसकसिद्ध तरीके जणाव्या नथी माटे बीजा कोइ गांगेय होवा जोइए अथवा गांगेय (भिष्मपि. तामह)नी माफक कृत्रिम नपुंसक थया छतां जे मोक्षे गया ते नपुंसक सिद्ध जाणवा, आ प्रमाणे समजायछे तत्त्व केयलिगम्य,