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________________ (३४०) ॥ श्रीनवतस्त्वविस्तरार्थः ॥ अवतरण-आ गाथामां पुरुषलिंग सिध्ध वगेरेना दृष्टांत कहेछे. ॥ मूळ गाथा ५८ मी, पुंसिधा गोयमाई, गांगेयाई नपुंसया सिध्धा । पत्तेयसयंबुधा, भणिया करकंडु कविलाइ ॥५८॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ पुरुषसिध्धा गौतमादयो, गांगेयादयो नपुंसकाः सिध्धाः । प्रत्येकस्वयंबुध्धा, भणिताः करकंडकपिलादयः ॥१८॥ ॥शब्दार्थः ॥ . . पुंसिध्धा-पुरुषलिंगे सिध्ध । पत्तेय- प्रत्येकबुध्यसिध्ध . गोयमाई--श्रीगौतमस्वामि वगेरे| सयंबुध्धा--स्वयंबुध्धसिध्ध गांगेयाई --गांगेय (मुनि)वगेरे | भणिया-कह्या छे, नपुंसया-नपुंसकलिंगे करकंडु-करकंड मुनि सिध्धा--सिध्ध थया कविलाई कपिलमुनि वगेरे ___ गाथार्थः-श्रीगौतमस्वामि वगेरे पुरुषलिंगे सिद्ध (कहेवाय) गांगेय विगेरे नपुंसकलिंगे सिध्ध थया कहेवाय तथा करकंडुमुनि वगेरे प्रत्येयबुद्धसिद्ध, अने कपिल केवली वगेरे स्वयंवुद्ध सिद्ध कहेवाय, विस्तरार्थः-श्री गौतम गणधर श्रीमहावीर भगवानना शिष्यहता होय नहि, कारणके स्त्रीने वस्त्रपरिग्रह अवश्य होय छे. ने परिग्रहीने मुक्ति होय नहिं. पण ते तद्दन अयुक्त छे, कारण संयमना साधन भूत उपकरण ते परिग्रह कही शकाय नही. परन्तु ' मुच्छा परिग्गहो वुत्तो'- मूर्छा एज परिग्रह . माटे वस्त्रादि उपर अममत्व भाववाळी स्त्रीने मोक्ष थवामां कोई प्रकारे हरकत नथी इत्यादि घणो वाद शास्त्रान्तरथी जाणवो
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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