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.. ॥ मोक्षतत्वे नवद्वारस्वरूम् ॥ (३३१)
८ जीपणाना चिन्हवाळी देहाकृतिए जे मोक्षे जाय ते स्त्रीलिंगसिड ( अर्थात् खीओ मोक्षे जाय ते स्त्रीलिंग सिद्ध.)
५ पुरुषपणाना चिन्हवाली देहाकतिए जे मोसे जाय ते पुरुषलिंग सिद्ध ( अर्थात् पुरुषो मोक्षे जाय ते पु० लि. सिद्ध)
१० नपुंसकपणाना चिन्हवाळी देहाकृतिए जे मोक्षे जाय ते नपुंसकलिंगसिद्धे ( अर्थात् कृत्रिम नपुंसको जे मोक्षे जाय ते ननपु० लिंग सिध्ध.)
११ संध्या समयना वादळना रंगो बदलावाथी. संसारमा तेवा तेवा प्रकारनी चीजोनां तेषां तेवां स्वरुप देखीने इत्यादि निमित्त पामीने वैराग्य भावना प्रकटतां केवळज्ञान पामी मोक्षे जाय ते प्रत्येकबुध्धसिध्ध. ( अहिं गुरुना उपदेशनो अभाव छे.)
१२ गुरुना उपदेश विना तथाप्रकारे कर्म पातळां पडवाथी कंइपण निमितविना पोतानेज संसार स्वरुप असार लागवाथी वैराग्यभावना प्रकटतां केवळ ज्ञान पामी मोक्षे ज़ाय ते स्वयंबुध्धसिध्ध कहेवाय.
अर्थः- श्वेताम्बर होय के दिगम्बर होय. बौद्ध होय के बीजा कोइपण धमवाळो होय तोपण जो समभावधडे (-सर्वज्ञोक्तरीते समताभावघडे ) वासित आत्मावाळो होयतो मोक्ष पामे एमां संदेह नथी.
१-२-३ बी त्रण प्रकारनी छे -१ वेदस्त्री-२ लिंगस्त्री-ने पथ्यस्त्री. त्यां जे वखते पुरुषसंगमनो अभिलाष वर्ततो होय ते वखते वेदस्त्री कहेवाय. तथा योनिस्तन वगेरे चिन्हो युक्त ते लिंगनी, अने बीनो वेष पहेरेला पुरुषादि ते नेपथ्यबी कहेवाय, ए त्रण भेदमांथी नेपथ्यस्त्री अने लिंगस्त्री मोक्षे जाय ( परन्तु वेष अप्रमाण मानवाथी शास्त्रमा लिंगस्त्रीरूप एक ज भेदमां मोक्ष कयो छे. १) पण वेदना उदयवाळी घेदस्त्रीने मोक्ष होय नहिं, ए प्रमाणे पुरुष तथा नपुंसकना संबंधमां पण विचारवं. ४-५ प्रत्येकबुद्ध भने स्वयंबुद्ध मां विशेष तफावत बोधि-उपधि-ज्ञान-ने वेष संबन्धि छे ते आ प्रमाणे