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________________ (३३२) ॥श्री नवतत्व विस्तरार्थ ॥ योधिभेदः-स्वयंबुद्ध बाधनिमित्त विनोज जातिस्मरणादिकवडे बोध पामे छे ते तीर्थकरने अतीर्थकर एम बे प्रकारना छे, परन्तु अहिं चालु अधिकारमा अतिर्थकर स्वयंबुद्ध स्वयंबुद्ध सिद्ध तरीके गणवा. तथा प्रत्येकबुद्ध वृषभादि धाशनिमि. त्तथी बोध (-वैराग्यादि ) पामे छे. ने प्रत्येक एटले एकला विहार करे छे पण प्रत्येकबुद्ध प्रत्येकबुद्धनी साथे वा अन्यसा. थे गच्छवत् एकठामळी विहार करता नथी.. उपधिभेदः - स्वयंबुद्ध ने पात्रादिक उपधि १२ प्रकारनी ज होय छे, ने प्रत्येकबुद्धने जघन्यथी बे प्रकारनी ने उत्कृष्टथी प्रावरण सिवाय ९ प्रकारनी उपधि होय छे. श्रुतभेदः- स्वयंबुद्ध ने श्रुतज्ञान होयतो पूर्वाधित (-पूर्वभवमा भणेलु ) श्रुतज्ञान ( जातिस्मथी) होय अन्यथा न होय. वळी जो पूर्वाधीत श्रुतज्ञान होयतो साधुवेष देव आपे अथवा गुरुपासे जइने पोते ग्रहण करे, अने एकल विहार करवा ने समर्थ होय अथवा तेवी इच्छा होय तो एकल विहार करे नहिं. तर गच्छवासमां रहे. अने जो पूर्वाधीतश्रुत न होय तो निश्चय गुरुपासे जइनेज साधुवेष अंगीकार करे अने गच्छमां ज रहे. तथा प्रत्येकबुध्धने तो जघन्यथी ११ अंग ने उत्कृष्टथी किंचित् न्यून १० पूर्व जेटलं पूर्वाधीतश्रुत होय... वेषभेदः-स्वयंबुद्धने वेष देव आपे अथवा गुरुपासे जइ. ने ग्रहण करे, अने प्रत्येकबुध्धने देव ज वेष आपे अन्यथा वेष रहित पण होय [ इत्यादि वर्णन श्री नन्दीसूत्रनी चूर्णी तथा श्री प्रज्ञापना वृत्तिमा छे. ) पुनः स्त्रीयाने प्रत्येकबुध्धपणुं होतु नथी. श्री नवतत्वावचूरीमां का छे के - तस्मिन् स्त्रीलिंगे वर्तमानाः संतो ये सिध्धाः प्रत्येकबुध्धवर्जिताः केचित् स्त्रीलिंगसिध्धाः (-ते स्त्रीलिं. गमां वर्तता छता प्रत्येकबुध्ध सिवायना जे कोइ मोक्षे गया ते स्त्रीलिंगसिध्ध कहेवाय छे. )
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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