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|| मोक्षतच्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥
॥ शब्दार्थः ॥
सव्व--सर्व, जिवाण - जीवोना
अणते-अनन्तमा भागे-भागे
ते-ते सिद्धजीवो
दंसणं-दर्शन
नाणं- ज्ञान
(३०७)
खइए - क्षायिक भावे - भावे छे, पारिणामिए - पारिणामिकभावे
य-वळी
पुण - पुनः
होइ-छे
जीवत्तं - जीवत्व
गाथार्थ :- ते सिडजीवो (नी संख्या) सर्वजीवोना अनंतमे भागे छे, तेओनं (केवळ ) दर्शन अने ज्ञान क्षायिकभावे छे अने पारिणामिक भावे जीवपणु छे.
विस्तरार्थः ते सिद्ध परमात्माओ सर्व जीवना अनन्तमा भाग जेटला अति अल्प के कारणके जगतमां असंख्याता (निगोदना ) गोळा छे, ने एकेक गोळामां असंख्यात निगोद छे, ने एकेक निगोदमां अनन्त अनन्त वनस्पति जीवो छे, ते पण एटला अनन्त जीवो छे के प्रति समय एकेक जीव मोक्षे जाय तोपण त्रणे काळमां एक निगोद पण खाली थाय नहिं, अने तेथीज आज सुधीमां जेटला सिद्ध थया छे, ने हजी भविष्यकाळमां जेटला सिद्ध थाना छे. ते सर्व सिडनी संख्या मेळवतां पण एक निगोदना असंख्यातमा भाग जेटली ज थाय ए प्रमाणे मात्र साधारण वनस्पति जीवोनी अपेक्षाए पण सर्व सिद्ध परमात्माओनी संख्या अनन्तमा भाग. जेटली छे तो सर्व संसारी जीवोनी अपेक्षाए सिसंख्या अनन्तमा भागे होय तेमां शु आश्रये ? ए प्रमाणे भागद्वार कह्यु.
हवे भाव द्वारमा प्रथम पांच भावोनां नाम तथा अर्थ कहेला छे