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॥श्री नवतत्वविस्तरार्थः ।।
अवतरण-आ गाथामां सिद्धना जीवोने भागबार अने भावद्वार दर्शावे छे,
॥ मूळ गाथा ४९ मी. सव्वजियाणमणंते, भागे ते तेसि ईसणं नाणं । खइए भावे परिणामिए अ पुण होइ जीवत्तं ॥४९॥
संस्कृतानुवादः . सर्वजीवानाम ते भागे ते तेषां दर्शनं ज्ञानं ।। क्षायिके भावे पारिणामिके च पुनर्भवति जीवत्वं ॥४९॥ विपरीत छे, कारण के सर्व कर्मनी बळेला बीजनी पेठे क्षय कर्याथी मोक्षमां गयेला जीवने पुनः कर्म केवी रीते लाग्यां ? अने कर्म विना संसारमा अवतरवु केम बनी शके ? तथा निरंजन निराकार रागद्वेष रहित वीतराग एवा निःकर्म इश्वरने कमविना भक्तजन उपर राग अने अभक्त उप्रर द्वेष केवी रीते होय ? माटे ज जैनदर्शन स्पष्टरीते जणावे छे के-कर्मविना रागद्वेष होय नहि, कर्मविना संसारमा अवतार लेवानु बने नहिं, एकवार कर्मनो सर्वथा क्षयं कर्या बाद पुनः फर्म लागे नहि, ने निरंजन निराकार वीतराग एवा ईश्वर परमात्माने भक्ति करनारपर राग के इर्ष्या करनारपर द्वेष पण न होय. अने ते कारणथी मोक्षमां गयेला सिद्ध इश्वर परमात्माओ पुनः संसारमा अवतरता नथीज.
२ अर्थात् ए अन्तर काळनी अपेक्षाए कह्यतेम क्षेत्रनी अ. पेक्षाए पण अन्तर नथी, कारण के ४५ लाव योजन व्यास अने ३३३ ध) १ हाथ ८ आंगळ स्थूल प्रमाण सिद्धक्षेत्रमा अनंतसिद्धी परस्पर देशांशे ने सर्वांशे संक्रमीने खीचोखीच रह्या छे, जेथी ४५ लाख योजनमां एवी कोइ एक आकाश. प्रदेश जेटली पण खाली जग्या नथी के ज्यां सिद्ध न होय. माटे क्षेत्रनी अपेक्षाए पण एक सिद्धथी बीजा सिद्धनी वरचे अन्तर खाली क्षेत्र नथी.