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.. ॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ (३०५) अनादिकाळनो होवाथी अमुक काळे मोक्षनो प्रारंभ थयो तेम नथी माटे अनादि अने मोक्षनो कोइ काळे अन्त नहिं होवाथी अनन्त छे, ए प्रमाणे सर्व सिद्ध परमात्माओनी अपेक्षाए-मोक्षतत्व अनादि-अनन्त काळ प्रमाण छे
हवे सिद्धने अन्तरद्वार कहे छे ते आ प्रमाणे-पडिवायाs भावाओ एटले सिद्धपणामांथी प्रतिपातना-पडवाना अभावथी सिद्धना एक जीवने पण अन्तरं-आंतरं नथी. कारणके बळी गयेला बीजनो जेम पुनः अंकुरो फुटतो नथी तेम सर्वथा क्षय पामेलां कर्म जीवने पुनः लागी शकतां नथी ने कर्म विना संसारीपणुं होतुं नथी. ने ए प्रमाणे जीवने बे त्रण के चारवार मोक्ष होइ शकतो नथी, पण मोक्ष एकज वार होय छे, तो मोक्षने अन्तर-आंतरुं केवी रीते होय ? कारणके प्रथम एक जीव मोक्षे गयो, त्यां केटलोककाळ रही पुनः संसारमा आवे, ने संसारमां पण केटलोक काळ रही पुनः मोक्षमा जाग्न आ प्रमाणे जो बनतुं होय तो बे (वार) मोक्षनी वच्चे एक ( संसारीपणारूप ) अन्तर पडयु कहेवाय, पण तेम तो बनतुं नथी माटे मोक्षने अन्तर पण नै होय, (तेमक्षेत्रनी अपेक्षाए पण एक सिद्धथी बीजा सिद्धनी वच्चे अन्तर (खालीक्षेत्र ) नथी ...१ सादि सान्त, सादि अनन्त, अनादि सान्त. अने अनादि अनन्त, प ४ प्रकारना काळमां अहिं मोक्षतत्वमा २ प्रकारनोज काळ लागु पडे छे. ने सिद्ध थइ पुनः संसारी थवाना अभा. वथी सादि सान्त, तथा अनादि सान्त ए बे प्रकार मोक्षने अ. गे लागुपडता नथी. .
१ प्रथम कहेला काळद्वार अने अहिं कहेला अन्तरद्वार थी ए पण भावार्थ आवे छे के लौकिकशास्त्रोमां " ईश्वर परमात्मा मोक्षमांथी संसारमा आवी पुनः भक्तजनोना उद्धार मा. टे अवतार धारण करे छे. " एम का छे ते जैनदर्शनथी