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॥ श्री नवव विस्तरार्थः ॥
स्पर्शेला छे, ए अधिक स्पर्शना मात्र एक आकाशप्रदेश जेटला जाडा अने सिडनी अवगाहना जेटला विशाळ एवा प्रतरवाळी हे, अथवा सिद्धना एक जीवे एक प्रदेश जाहुँ बख्तर सर्वांगे पहेयूँ हो
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तेवी छे, अहिं अधिकता ते अवगाहित आकाश प्रदेशोनी अपेक्षाएं जाणवी ने आ स्पर्शनाद्वार एक सिद्धनी अपेक्षाए ज सर्वत्र कहेल छे, पुनः एक आकाश प्रदेश जेटला जाडा ते अधिक स्पर्शनाना प्रतरमा बीजा जीव तथा पुद्गल वगेरेना अनन्तानन्त प्रदेश अवगाहेला होय ते पण सिद्धने अधिक स्पर्शनामां गणवा, कारणके लोकमां ज्यां आकाशनो एक प्रदेश छे. त्यां धर्मास्ति नो? अधर्मास्तिकायनो अने जीव तथा पुद्गलना अनन्त अनन्त प्रदेशो अवश्य रहेला छे. माटे ते पण अधिक स्पर्शनामां गणवा. अहिं स्पर्शना अने अवगाहनामां तफावत ए के के परस्पर प्रवेशरूपे सर्वोशे संक्रान्तथयेला प्रदेशो ते अवगाहित अने उपरथी देशांशे अडीने रहेला प्रदेशो ते स्पर्शित कवाय, ए प्रमाणे अधिकस्पर्शनानं स्वरूप कहुँ.
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हवे सिडने काळानुं स्वरूप कहे छे, त्यां प्रथम एकसिअने अनेक ( सर्व ) सिद्ध आश्रयि एम काळद्वार बे प्रकार छे, त्यां अमुक एक सिद्ध ज्यारे मोक्षमा गयो त्या रे ते सिद्धनी अपेक्षाए मोक्षनी सादि ( स - आदि-आदि सहित - प्रारंभ थयो) ने हवे ते मोक्षनो कोइपण काळे अन्त नहि होवाथी अनन्त (अन् नहि अन्त-विनाश ) काळ प्रमाणनो जाणबो, ए प्रमाणे एक सिद्ध परमात्मानी अपेक्षाए मोक्ष सादिअनन्त छे, तथा सर्व सिद्ध परमात्मानी अपेक्षाये विचारीये तो सर्वे सिद्धम प्रथम कोण मोक्षे गया ? अथवा मोक्षनी शरुआत क्यारथी थइ ? एना उत्तरमा सर्वज्ञो एमज कहे छे के मोक्ष प्रवाह