________________
॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ सिद्धरूप जीवद्रव्यनुं एटले सिद्धजीवोनी संख्यानुएवो अर्थ सुगम थाय छे, अन ते सिद्धजीवोनी संख्यानुं प्रमाण केटलं छे ? ते दर्शावे छे-के सिद्धाणं जीवदव्वाणि हुंति गंताणि-सिद्ध परमात्मानां जीवद्रव्यो अनंत छ, अर्थात् सिद्धपरमात्मा एक बे नथी पण अनंत छ. नहिं ध्यानमा राखवा योग्य छे के जीव पोतेज सिदुरूप छे, परन्तु ज्यांमुधी कर्मसहित छे, त्यांसुधी संसारी छे, अने कर्म रहित थतां सिद्ध थाय छे, तो ते संसारी जीवो अनंत छे ने ते संसारी जीवोज सिद्ध थता होवाथी सिद्ध जोवो पण अनंत छे. ___हवे ते सिद्ध जीवो केटला क्षेत्रमा रहे छे ते क्षेत्रप्रमाणद्वार दर्शावे छे के-लोगस्त असंखिज्जे भागे इको य सब्वेविलोकना असंख्यातमा भागमां एक सिद्ध रहे थे, ने सर्व सिद्धपरमात्माओ पण तेटला एटले असंख्यातमा भागना क्षेत्रमा रहेला छे, अहिं भावार्थ ए छे के सिद्धपरमात्मा १४ राजलोकना अग्र भागे
१ आ अर्थ उपरथी सार, प लेवानो छे के दुनियाना घणी भाग के जे ईश्वर एकज छे एम माने छे, ते असत्य छे, कार णके सिद्धपरमात्मा सिवाय बीजो कोइ ईश्वर नथी अने ते सि. द्धपरमात्मा अनन्त छे, वळी जा एकज ईश्वर मानीये तो ज. गतमां ईश्वरनी भक्ति उपासना करनार कोइपण जीव ईश्वर रूप थताज नथी एम मानव पडे, कारणके तेम थवाथी तो इश्वर अनेक थइ जाय ते अन्यदर्शनीयोने मान्य नथो, तो विचारवा. नी वात छे के ज्यारे इश्वरनी भक्ति उपासनाथो पण ईश्वर रूप थवा नथी तो अनेक कष्टो वेठी इश्वरनी भक्ति उपासना करवी व्यर्थ छे, माटे जैनदर्शननी एज मान्यता छ के एक जीवे जे मार्ग चाली सिद्धपणुं ईश्वरपणुं प्राप्त कर्यु छ ते मार्गे चालनारा बीजा संसारी जीको पण सिद्ध-इश्वररूप बनो. शके छे, ने ते कारमयी सिद्ध अथवा इश्वर एक नथी पण अनन्त छे.