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________________ [३००) ॥ श्री नवतचविस्तरार्थः ॥ बीजो भेद द्रव्यप्रमाणद्वार अने त्रीजो भेद क्षेत्रबारर्नु स्वरुप दर्शावे छे. ||मूळ गाथा ४२॥ दव्वपमाणे सिद्धाणं, जीवदव्वाणि हुंतिऽणंताणि। लोगस्स असंखिज्जे, भागे इको य सव्वे वि ॥४७॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ द्रव्यप्रमाणे सिद्धानां जीवद्रव्याणि भवन्त्यनंतानि । लोकस्यासंख्येयभागे एकश्च सर्वेऽपि ॥ ७ ॥ ॥शब्दार्थः ॥ दव्बपमाणे-द्रव्यप्रमाण | लोगस्स-लोकना द्वारमा | असंखिज्जे-असंख्यातम सिधाणं-सिध्ध परमात्मानां | भागे-भागे जीवदवाणि-जीवद्रव्यो (जीव | इक्को--एक सिध्ध परमात्मा संख्या) य--अने। हुन्ति-छे सवे--सर्वे सिंध परमात्मा अणंताणि-अनन्त । अवि-पण ___ गाथार्थः- (बीजा ) द्रव्यप्रमाणद्वारमा सिद्ध परमात्मानां जीव द्रव्यो ( सिद्ध जीवोनी संख्या ) अनंत छ, अने (त्रीजा क्षेत्रद्वारमां) एक सिद्ध परमात्मा अने सर्वे पण सिध्धपरमात्मा लोकाकाशना असंख्यातमा भाग जेटला क्षेत्रमा रहेला छे. विस्तरार्थ:-हवे आ गाथामां मोक्ष तत्त्वनो बीजो भेद द्रव्य प्रमाणद्वार, अने त्रीजो भेद क्षेत्रद्वार कहेवामां आवे छे. त्यां द्रव्य एटले पदार्थ अथवा वस्तु एवो अर्थ थायछे परन्तु आ स्थाने
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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