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________________ || मोक्षतश्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ (२९७) गया बाद " मोक्षे जवानी योग्यता " ए अर्थ लागू पडतो नयी माटे सिद्ध परमात्मा नोभव्य नोअभव्य भव्य पण नहि, अने अभव्य पण नहिं एम कहेवाय छे, पुनः जेटला भव्य जीवो जगतमा छे ते सर्व नहि पण तेनो अनन्तमो भागज मोक्षप्राप्ति वाळो छे. छतां पण शेष रहेला (मोझे जवानी योग्यतावाळा छai मोक्षे नहिं जनारा ) जीवो योग्यतावाळा होवाथी भव्य तो कहेवाय ज. पुनः ते भव्यो पण एवा छे के जेओ कोइ पण काळे सू० निगोदमांथी निकळवानाज नथी तो मोक्षप्राप्सिनी तो वातज शी ? छतां पण जेम गर्भ धारण करवानी शक्तिवाळी स्त्री पतिसंयोगना अभावे पुत्रवाळी न होइ शके परन्तु ते वंध्या न कदेवाय, तेम सामग्रीना अभावे कदीपण मोक्ष नहि पामनारा भव्य जीवो अभव्य तो न ज कहेवाय. ( कोइ कोइ स्थाने एवा जीवोने भव्याभव्य कह्या छे, ) इत्यादि विशेष वर्णन लोकप्रकाशादि गंथोथी जाणवुं. संज्ञि मार्गणामांथी संनि-संज्ञि - मनवाळा जीवोनेज मोक्षप्राप्ति छे, पण असंज्ञि जीवोने नहिं, कारण के विशिष्ट मनोविज्ञानविन चारित्रनो अभाव छे, अने चारित्रना अभावे मोक्षनो पण अभावन छे. अहि संज्ञि एटले विशिष्ट मनोविज्ञानवाळा एवो अर्थ जाणो, परन्तु विशिष्ट मनोविज्ञानमां वर्तता एटले मनोयोगवाळा eat अर्थ न करो, कारण के त्रण योगमांधी कोइ पण योगमां वर्तत जीवने मोक्ष होय नहिं, परन्तु अयोगपणुं प्राप्त थाय त्यारेज मोक्ष होइ शके. १ सिद्ध परमात्मा नोसन्नि नोअसन्नि पटले संक्षि नहि तेम ज असंज्ञि पण नही एव कथा छे, तेम अयोगि अवस्थामां मोक्ष होय छे, छतां अहिं संज्ञिने जे मोक्ष कह्यो छे, ते अयोगि भगवन् द्रव्यमनयुक्त छे, प अपेक्षाथी अयो
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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