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(२९६) ॥श्री नवतश्वविस्तरार्थः ।। . गाथार्थः-मनुष्यगतिमार्ग०-पंचेन्द्रिय मा०-त्रसकाय मा०. -भव्यमा०-संज्ञि मा०-यथाख्यात चारित्रमा० क्षायिकसम्यक्त्व मा० अनाहारक मा०-केवळदर्शन मा०- फेवळज्ञान मार्ग० ए १० मार्गणामां मोक्ष थाय छ, पण बाकीनी (४ मूळ भथवा ५२ उत्तर) मार्गणामां मोक्ष होय नहि. ___ विस्तरार्थः पूर्व गाथामां मार्गणाओनां मूळ नाम तथा तेना उत्तरभेदनी संख्या दर्शावीने हवे आ गाथामां ते मार्गणाओमांथी [-जीवभेदोमांथी कइ का मार्गणामां [-कया फया जीवमेदमां ) मोक्षनी प्राप्ति थाय छे ते दर्शावे छे
गतिमार्गणामांथी नरगइ-मनुष्यगतिमां मोक्षप्राप्ति होय छे, पण शेष ३ गतियोमां मोक्ष होय नहि. कारणके सर्वविरति चारित्र विना मोक्षनी प्राप्ति होय नहिं, अने नारक देवने सम्यक्त्व होय पण चारित्र न होय अने ग० ति० पंचे० ने वधुमां वधु देशविरति चारित्र ज होय माटे ए त्रणे गतिमां मोक्षनी प्राप्ति नथी ( माटे ज मनु० गति सर्वोतम छ,) .
इन्द्रिय मार्गणामाथी पणिदि-पंचेन्द्रियने मोक्षप्राप्ति होय, पण शेष एकेन्द्रियादिकने मोक्षप्राप्ति न होय, कारणके प्रथम कह्या प्रमाणे मोक्षप्राप्ति मनुष्यगतिमांज होय छे ने मनुष्यगति ते पंचेन्द्रिय मार्गणामांज अन्तर्गत छ माटे, ___ कायमार्गगामांथी तस-त्रसकायमांज मोक्षपाप्ति छ, पण मनुष्यस्वना अभावथी स्थावरजीवोने मोक्ष प्राप्ति नयी. ___ भव्यमार्गणामांथी भव्यजीवनेज मोक्षप्राप्ति छ, परन्तु अभव्यने नहिं, कारणके भव्य ए नामज मोक्षगमननी योग्यताने अं. गे पडेल छे(अर्थात् भव्य एटले मोक्षगमननी योग्यता पाळो जीय) माटे मोक्ष पाम्या बाद ते जीव भव्य न कहेवाय, कारणके मोत्रे