________________
(२९८) ॥ श्रीनवतत्वविस्तरार्थः ।। - चारित्र मार्गणामांथी अहकखाय-यथाख्यात चारित्रीने मोक्षप्राप्ति होय, पण शेष ६ चारित्रमा नहिं, कारण के मोक्षप्राप्ति सर्वोत्कृष्ट अथवा सर्वाशे शुद्ध एवा चारित्रथी होय छे, ने तेवू सवीशे शुद्ध क्षायिक यथाख्योत चारित्रज छे... . सम्यक्त्व मार्गणामांथी क्षायिकसम्यक्त्वी जीवने मोक्ष प्राप्ति होय, कारण के मोक्ष क्षायिक यथाख्यातचारित्रथी होय छे, ने क्षा० यथाख्या० चारित्र शायिक सम्यक्त्व विना होय नहि माटे मोक्षप्राप्ति क्षा० सम्य० मां छे. ___आहार मार्गणामांथी अनाहारी जीवने मोक्षप्राप्ति छ, परन्तु आहारी जीवने नहि. कारण के आहार ते सयोगी ( मन वचन कायाना योगवाळा ) जीवने होय छे, ने सयोगी जीवने मोक्षप्राप्ति थती नथी मारे आहारी जीवने पण मोक्ष प्राप्ति होय नहिं, परन्तु अनाहारी जीवनेज मोक्षप्राप्ति होय छे. - ज्ञानमार्गणामां केवळज्ञानीने मोक्षप्राप्ति होय छे, परन्तु शेष चारज्ञानवाळा जीवोने नहिं. कारण के शेष ४ ज्ञान क्षयोपशमभावनां छे, ने क्षयोपशम भावे मोक्षप्राप्ति होय नहिं पण क्षायिक भावे ज मोक्षप्राप्ति होय माटे शेष ४ ज्ञानीने मोक्ष प्राप्ति होय नहिं. पण क्षायिकभाववाला केवळज्ञानमांज मोक्षप्राप्ति होय.
दर्शन मार्गणामां केवळ दर्शनीने मोक्ष होय, परन्तु शेष चार गिभगवान् संज्ञि कहेवाय छे माटे संज्ञिने मोक्ष कह्यो छे, अन्यथा अयोगि भगवान् संज्ञामां वर्तवावाळा नहिं होवाथीभावप्रव. तिनी अपेक्षाए संज्ञिपणामां मोक्ष होइ शके नहिं,
१ ११ मे गुणस्थाने उपशम यथाख्या०, ने १२-१३-१४ गुणस्थाने क्षायिक यथाख्या चारित्र ए प्रमाणे यथाख्या:चावे प्रकारनांछे. पुनः सिध्धनेज्मांनु एक पण चारित्र नहिं तेथी शास्त्रमा सिध्ध परमात्माने नोचारित्री नो अचारित्रीविशेषणथी कह्या छे.