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________________ (२९०) ॥श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः ॥ त्ति-ए (इति) परूवणा-प्ररूपणा ( कथन) मग्गणाईहि-मार्गणाओवडे तस्य-तेनी (मोक्षनी) कराय छे, उ-चळी. गाथार्थ:-( मोक्ष ए ) एक पद होवाथी सत् एटले विद्यमान छे, परन्तु आकाशना फुलनी पेठे असत् ( -अविद्यमान ) नथी, अने मोक्ष ए एक पद छ, अने ते मोक्षपदनी प्ररुपणा हवे १४ मार्गणाद्वारे थाय छे. विस्तरार्थ:----हवे आ गाथामां मोक्षतत्वनो प्रथम भेद सत्प. दारपणाद्वार कहे छे, अर्थात् मोक्ष ए वस्तु जगत्मा छे के नहि ? ते साबित करे छे. ते आ प्रमाणे-... दुनियामाँ जेटली एक पद एटले शब्दवाळी वस्तुओ ते सत्विद्यमान ज छे, जेमके आकाश-पुष्प वन्ध्या-पुत्र सुवर्ण-आभूषण रत्न-सेज इत्यादि सर्व एकेक पदवाळी वस्तुओ विद्यमानछे, अने वे त्रण चार इत्यादि अधिक पदवाळी वस्तु विद्यमान होय अथवा न पण होय, जेमके सुवर्णाभरण (--सोनार्नु आभरण ) ए बे पदवाळी वस्तु विद्यमान छे, रत्नतेज (-रत्नोनुं तेज ] ए पण बे पदवाळी वस्तु विद्यमान छे, अने आकाशपुष्प [-आकाश, फुल तथा वन्ध्यापुत्र [--बांझणीनो पुत्र ) इत्यादि बे बे पदवाळी वस्तुओ अविद्यमान छे, ए उपरथी तात्पर्य ए आव्युं के एकेक पदवाळी वस्तुओ सर्वे विद्यमान ज छे, अने एकथी अधिकबे वगेरे पदवाळी वस्तुओ विद्यमान होय एवो नियम नथी, तो हवे मोक्ष ए एक पदवाळी वस्तु होवाथी अवश्य विद्यमान छ, प. रन्तु आकाशपुष्पवत् (बे पदवाळी वस्तुनी माफक ] अविद्यमान नथी,
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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