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|| मोक्षतत्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥ (२९१)
तर्क - जो एम कहो के एकेक पदवाळी वस्तुओ. सर्व विद्यमानज छे तो डित्थ- कक्कु -- दिस्क इत्यादि पण एकेक पदनी कल्पना करीए तो तेवी वस्तु शुं कोइ छे ! अर्थात् नथी, ज तेम मोक्ष ए पण एक पद कल्पनावाळु होय तो ते विद्यमान ज छे, एम केम कही शकाय ? अने ते साथे एकेक पदवाळी वस्तुओ स विद्यमान होय एम पण बनी शके नहि,
उत्तर --- हे तार्किक ! अमो एम कहीए छीए के " एकेक पद वाळी वस्तु सर्व विद्यमानज के " तो तमारी कहेली डित्थ--ककु - दिस्क इत्यादि पदवाळी वस्तु छे ? के अवस्तु छे ! जो वस्तु हे तो वस्तुनी अविद्यमानता केम कहो छो ? अने जो अवस्तु छे तो अस्तु frer कक्कु दिस्क इत्यादि नाम शी रीते ? कही शका छो ? अर्थात् अवस्तुनुं पद - नाम होय ज नहिं, कारणके वस्तुतुंज नाम होय पण अवस्तुनुं नाम दुनियामां होतुंज नथी, अने पद पण तेज कहेवायके जे ते पदवाळी वस्तु होइ शके माटे तमारि डित्य इत्यादि एक पदवाळी वस्तु पण नथी ए तो " एक पदवाळी वस्तुओ " कहीने पुन: " नथी " एम कहेवाथी वदतो व्याघात जेवुं थयुं, माटे मानवुं जोइए के एक पदवाळी वस्तुओ विद्यमान ज छे, अने मोक्ष ए एक पद छे माटे मोक्ष ए विद्य मान ज छे. अने ते मोक्ष कह कर मार्गणामां छे तेनी प्ररूपणा कराय छे,
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अवतरण --- हवे आ गाथामां (मोक्षपदनी प्ररूपणा मार्गणा छारे करवा माटे ) १४ मूळ मार्गणाओनुं नाम दर्शावे छे, ॥ मूळ गाथा ४५ मी. ॥