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________________ ॥ बन्धतत्वेऽष्टकर्मस्वरूपम् ॥ (२८३) ॥ शब्दार्थः ॥ .. सित्तरि-सित्तेर (७०) तितीसं तेत्रीश (३३) कोडाकाडी-क्रोडकोड . अयराई-सागरोपम . मोहणिए मोहनीय कर्मनी आउ-आयुष्य कर्मनो पीस-वीश २० (को० को०) ठिइबंध-स्थितिबंध नाम-नाम कर्मनो उकोसा उत्कृष्टथी गोएसु-गोत्रकर्मनी गाथार्थ:-मोहनीय कर्मनो स्थितिबन्ध ७० को० को० साग०, नाम अने गोत्रकर्मनो स्थितिबन्ध २० को० को० साग अने आयुष्यनो उ० स्थि० बन्ध ३३ सागरोपम छे. विस्तरार्थ:-सुगम छे, अवतरण-हवे आ गाथामां आठ मूळकर्मनो जघन्य स्थितिबन्ध दर्शवे हे. || मूळ गाथा ४२ ॥ बारसमुहुत्त जहन्ना, वेयणिए अट्ट नामगोएसु । सेसाणंतमुहत्तं, एयं बन्धट्टिई माणं ॥ ४२ ॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ बादशमुहूर्तानि जघन्या, वेदनीयेऽष्टी नामगोत्रयोः। .. शेषाणामन्तमुहूर्त-मेतद्घन्धस्थितिमानं ॥ ४२ ॥ ॥ शब्दार्थः ॥ बारस-बार (१२) . । वेयणिए-वेदनीय कर्मनी मुहुत्त-मुहूर्त अट्ट-आठ (८) जहन्ना-जघन्य ( अल्प) । नाम-नामकर्मनी . .
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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