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(२८४) ... ॥श्री नवतश्वविस्तरार्थ ॥ गोएसु-गोत्रकर्मनी एयं-ए ( प्रमाणे) सेसाणं-बाकीनां पांच कर्मनी | बंधहिई-कर्मना स्थितिबंधनुं अन्तमुहूत्त-अन्तर्मुहूर्त . । मान-प्रमाण छ
गाथार्थ-वेदनीयकर्मनी जघ० स्थिति १२ मुहूर्तनी नामकर्म अने गोत्रकर्मनी जघ० स्थि० ८ मुहूर्त्तनो, अने शेष (-बाकीलां ) ५ कर्मनी जघ० स्थि० अन्तर्मुः छे. ए प्रमाणे (आठे कर्मना जघ० स्थितिबन्ध प्रमाण कह्यु,
विस्तरार्थः-सुगम छे.
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13 ममाण का,
१ श्री उत्तराध्ययन सूत्रमा १ अन्तर्मु० नी पण कही छे, अने अकषायी जीवने २ समयनी पण होय छे. बीजी सर्व स्थितिओ सकषायी होवाथी अन्तमु० थी ओछी न होय.