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॥श्री नवतस्वविस्तरार्थः ॥ ते जगतमा हीन मनाय, अने कोइ आत्माने क्षत्रियादि उच्च कुळवाळो बनाये ते जगतमां पूज्य मनाय माटे गोत्रकर्म कुंभार सरखु छे
१ वर्तमान समयमां अनार्य प्रजाना शिक्षणनी-राज्य. कुशळतानी हुन्नरकळानी-अने आबादी वगेरे कारणोनी असरथी अर्थात् ते शिक्षणथी आर्यसंस्कारो पलटावाथी केटलाएक भाषाज्ञानीओ एवी कल्पना करे छे के-मनुष्यत्व सर्वने सरखं छे, माटे सर्वनो हक्क एक सरखो होवो जोइए माटे अमुक माणस उंचकुळनो, अने अमुक माणस हीनकुळनो ए कल्पना साक्षर वर्गने अयोग्य छे, कारणके महात्माओने तो 'वसुधैव कुटुंबकम् आखी पृथ्वी पोताना कुटुम्ब तुल्य , छे. तो आवो उच्चभावनामां अमुक उच्च अने अमुक नीच एम मानवाना अवकाशज क्याथी होय ? इत्यादि अनेक कल्पनाओ करी सर्वने एक सरखो व्यवहार करवानुं शीखववा प्रयत्न करे छे, पण ते सर्व आर्यधर्मनी फीलोसोफीनु ( तत्त्वज्ञानन ) अनभिज्ञपणु ( अज्ञान ] ज जाहेर करे छे, कारणके उच्च नीच पणानो व्यवहार आर्यधर्ममा मात्र कर्म ( कार्य ) ने अंगे ज नहिं परन्तु तेवा तेवा प्रकारना कर्मथी उत्पन्न थता गुणोवडे पण मनायलो छे. वळी उच्च नीचपणानो व्यवहार मुखमात्रथी भले न मानवामां आवे पण कुद्रतथी राजादिक सद्गुणीने ने जे उच्चत्वनुं मान अपाय छे, अने दुर्गुणीने जे हीनपणानुं मान अपाय छे ते कोनाथी निवारण थइ शके तेम छ ? जो कहो के उच्च गुणोने अंगे उच्चता अ. ने दुर्गणोने अंगे हीनता तो मानवा योग्यज छे, तो पछी आर्य धर्म पण तेमज कहे छे, तो सर्वमनुष्यने एक सरखा मानपानी कल्पना कइ रीते थइ शके ? अहिं सर्व वातनो सार ए. ज छे के दुनियामां उच्चपणुं अने हीनपणुं आज कालथी नहिं पण अनादि काळथी चालतुं आव्युं छे. ने चालशे. वळी अनार्य प्रजामां उच्चकुळ हीनकुळ मानवानी व्यवहार नथी ए. म कहेवू पण असत्य छे, कारणके ते प्रजामां पण लॉर्ड-अमी