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________________ .. ॥बन्धतत्त्वेऽष्टकर्मस्वरूपम् (२७९) न्तु न्यायाधीशे ज्यां सुधीनी टीप मारी छे त्यांसुधी जेलमा रहे ज पडे तेम कुद्रतना न्यायाधीशे आत्मपरिणामरुप गुन्हाने अनुसारे जे गतिमां जेटलो काळ रहेवा फरमाव्यु छे तेटलो काळ ते गतिमा रहेकुंज पडे पण जीव ते गतिमाथी छूटी बीजी गतिमां जबानी इच्छा करे तो पण निर्णित थयेला काळरुप आयुष्यने पूर्ण कर्या विना बीजी गतिमां जइ शके नहिं. माटे आयुष्य कर्म जेल ( अथवा पीजरा ) सरखं छे. चार गतिमाथी नरक गतिना जीवो अत्यंत दुःख पडवाथी नरकगतिमांथी छूटवा इच्छे छे, पण छूटी शकता नथी, ने अनुत्तर देवो अनंत पौद्गलिक सुखने वैराग्यवडे असार जाणवाथी मनुष्यगतिमां आवी चारित्र अंगीकार करवा इच्छे छे पण देवगतिमांथी ( आयुष्य पूर्ण थया विना स्वयं) छूटी शकता नथी अने बीजा जीवा तो प्रायः पातानो भव छोडवा इ. च्छता नथी, अने कदाच उंच गतिमां जवानी आशाए छोडवा इ. च्छे, तो पण छोडी शके नहिं मारे आयुष्य कर्म ते बेडी सरखुज छे. __नाम कर्भ चितारा सरखं छे, एटले चितारो जेम जीवनी छबीओ चितरतां तेना हाथ पग शरीर वगेरे भिन्न भिन्न जातना आकोर चितरीने एक छबी बनावे, तेम नामकर्म पण जीवनां देवत्व-नारकत्वादि तथा हाथ-पग-शरीर-संघयण-आकृति-इत्यादि जुदा जुदा प्रकारनां ( जीवनां ) रुप घडे ( बनावे ) छे. माटे नामकर्म रितारा सरखु छे. ___ गोत्रकर्म कुंभार सरखं छे, एटले कुंभार जेम एक घडो मदिरानो बनावे ते दुगंछनीय थाय, अने बीजो घडो मंगल कुंभनो मो बनावे ते पूजनीक थाय तेम गोत्रकर्म पण कोइ आत्माने अं त्यनादि (ढेड-चमार-भंगी-वाघरी इत्यादि ) हीनकुळनो बनावे
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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