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|| श्री नवत विस्तरार्थः ॥
जीवने दुःख - शोक आपनाएं) होय छे. वळी ते शुभ वा अशुभ रस पण कोइमां तीव्र ने कोइमां मन्द होय छे, ए प्रमाणे तीव्रता अने मन्दता युक्त जे शुभाशुभ विपाकनो नियम पण कर्मबंध वखतेज थाय छे ते रसबंध कहेवाय.
वेळी जेम कोइक मोदक ओछा लोटनो अने कोइक मोदक. धारे लोटनो ( एटले कोइक पाशेरीयो ने कोइक शेरीयो ) बांधेलो होय छे, तेम कोइ कर्म बीजां कर्मथी ओछा वा अधिक प्रदेश ( अणुओं ) वाळु बंधा ते प्रदेशबंध कहेवाय.
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अवतरण - पूर्व गाथामा १२ प्रकारना तपने निर्जरातव कां त्यां ६ प्रकारनो बाह्य तप अने ६ प्रकारनो अभ्यन्तर तप मलीने १२ प्रकारनो तप थाय छे, ते आ गाथामां प्रथम ६ प्रकारनो बाह्य तप दर्शाने के
॥ मूळ गाथा ३५ मी ॥ अणसणमृणोअरिया- वित्तीसंखेवणं रसञ्चाच । कायकिलेसो संली - या य बज्झो तवो होइ ॥ ३५ ॥
१ आ चारे बन्ध मात्र मोदकना दृष्टान्तेज होय एम नहिं, परन्तु बीजा दुग्ध-घृतादि पदार्थोंना दृष्टान्ते पण होइ शके- जेमके अमुक अमुक दूधना जेम देह पुष्ट्यादि भिन्नभिन्न गुण छे, तेम कर्मना पण भिन्नभिन्न स्वभाव छे, अमुक दूध जेम अमुक वखत सुधी सारी रही शके छे, तेम अमुक कर्म पण अमुक वखत सुधी कर्म पणे रही शके छे, अमुक दूध जेम अमुक तोत्रादि रसवाळु छे तेम अमुक कर्म पण अमु-क तीव्रादि रसवालुं छे. ने अमुक दूध जेम हीनाधिक प्रदेशीवाळु छे तेम कर्म पण हीनाधिक प्रदेशोवाळु छे इत्यादि रोते अनेक पदार्थोद्वारा आठकर्मनां दृष्टांत यथायोग्य विचारां