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________________ || निर्ज्जतत्वे तपःस्वरूपम् (२५७) विस्तरार्थ - १२ प्रकारनो तप आगळनी गाथाओमां दर्शा - वाशे, ने चारप्रकारना बन्धनुं किंचित् स्वरूप कहेवाय छे. अहिं कर्मना चार प्रकारना बन्धां शास्त्रमसिध्ध मोदकनुं दृष्टान्त आप्रमाणे छे . जेम सुंठ वगेरे पदार्थना लाडुमां कोइ लाडुनो स्वाभाव वायु दूर करवानो, कोइनो कफ दूर करवानो, अने कोइनो पित्त दूर करवानो एम जुदा जुदा स्वभाव होय छे. तेम आठप्रकारना कर्मना पंण जुदा जुदा स्वभाव होय छे, जेम ज्ञानाव० कर्मनो स्वभाव आत्माना ज्ञानगुणने आंवरवानो, दर्शनाव० कर्मनो स्वभाव दर्शनगुणने आववानो, इत्यादि जे कर्मनो जे स्वभाव ते स्व भाव सहितज ते कर्म बन्धाय छे, माटे प्रकृतिबन्ध कहेवाय. . तथा जेम कोइ मोदक १० दिवस सुधी सारो रहे ने त्यार - बाद तेनो गुण विनाश पामे, कोइ १५ दिवस अने कोइ १ मास सुधी सारो रहे तेम कोइ कर्म आत्मानी साथै २० कोडाकोडी सागोपम रहे कोई कर्म ३० को ०को० सा०अने कोइ कर्म वधुमां वधु७० को० को ० सागरोपम आत्माना संबन्ध ते स्वभावे रहे छे अने त्यारबाद ते आत्माथी अलग थइ ते ते स्वभाव रहित थइ जाय छे. ए प्रमाणे कर्म कर्मपणे रहेवानो काळ पण बन्धम समयेज नियमित थाय छे माटे कर्मना काळनो नियम ते स्थितिबन्ध कहेवाय, तथा जेम कोइक मोदक मधुर-मीठो होय छे. ने कोइक कडवो होय छे, ने कोइक तीखो इत्यादि शुभाशुभ रसवाळो होय छे, तेम कोई कर्म शुभ रसवाळु (- एटले उदय आवतां जीवने हर्ष - मुख आपनारु ) अने कोई कर्म अशुभ रसवाळे ( एटले उदय आवतां १ - कर्मनां नाम तथा ते ते कर्मना स्वभाव अने स्थि ति आगळ गाथाथीज कहेवाशे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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