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|| दिनरातत्वे तपःस्वरूपम्
(२५१)
१ क्षेत्र - परि० वि० चारित्र अंगीकार करनार मुनिओनुं जन्मक्षेत्र ५ भरतने ५ व्रत, पण महाविदेह नहिं, अने परिहारकल्प अंगीकार करवानुं क्षेत्र पण एज. वळी जिनकल्पीनु संहरण थवाथी जेम सर्व क्षेत्रोमा जिनकल्पीनी प्राप्ति छे तेम एओनुं संहरण पण नथी.
२ काळ - अवसर्पिणीना वीजे अने चोथे आरे तेओनो जन्मकाळ होय छे, अने सद्भाव ( हयाती ) तो अव०ना ३-४-५ अने उत्स० न ३-४ आरामां.
३ चारित्र - सामायिकचारित्र अने छेदोप० चारित्रनां संयमस्थान ( - अध्यव० स्थान ) थी उपरनां जे असं० लोकप्रदेश प्रमाण परि० वि० नां संयमस्थानो छे तेमां वर्तता जीवनेज प रि० वि० चारित्रनी प्राप्ति होय.
४ तीर्थ - जिनेश्वरनुं शासन विच्छेद पाम्युं होय अथवा उत्पन्न पण न थय होय तेवा अवसरमा परि० बि० चारित्रीया न होय पण शासन प्रवर्तमान समयेज होय.
५ पर्याय - जेनो गृहस्थपर्याय जघ० २९ वर्षने। अने उ० देशोनपू० क्रोड वर्षनो होय अने यतिपर्याय जघ० २० वर्ष अने ने उ० देशोन पू० क्रो० वर्षनो होय तेवो मुनि परि०षि० चारित्र अंगोकार करे,
६ आगम - ननुं सिद्धान्त न भणे पण प्रथमनुं भणेलुं स्मरण करे.
७ वेद - नपुंवेदी वा पुरुषवेदी होय पण स्त्रीवेदी नहि.
८ कल्प — स्थित कल्पमांज होय. ( त्यां अचेलकादि १०
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कल्पवाळा मुनि स्थितकल्पी, अने शय्यातरादि चारमां वर्तवावाळा अने शेष ६ कल्पमां नहिं वर्तवावाळा मुनिओ अस्थितकल्पीक हेवाय
१ शय्यातर पिण्ड- चतुर्याम पुरुषज्येष्ट अने कृतिकर्मकरणं
ए ४ अवस्थितकल्प छे, ने शेष ६ अनवस्थिकल्प छे.