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. ॥.संवरतत्वे चारित्रस्वपरूम् ॥ (२४९) तेनो तद्धित प्रत्यय लागतां सामायिक एटले जेनावडे अथवा जे ज्ञान-दर्शन-चारित्रनो लाम ते, अर्थात् सामायिक एटले सर्व सावधव्यापारना त्यागरूप सर्वविरतिचारित्र कहेवाय, अहिं जोके पांचे प्रकारनां चारित्र परमार्थथी सामायिकरूप छे. तोपण कंडक जातना फेरफारवडे पांच जुदा जुदा नाम पाडेला छे. त्यां प्रथम दीक्षा अङ्गीकार करवी ते अहीं सामायिक चारित्रं कहेवाय छे. आ सामायिक चारित्र बे प्रकारनुं छे तेमां भरत अने अरवत क्षेत्रमा प्हेला अने छेल्ला तीर्थकरना शासनमां ज्यां सुधी शिष्यने महाव्रतनो आरोप न कराय त्यां सुधी लघु दीक्षारूप अल्पकाळनु ( विशेषतः ६ मासर्नु ) जे चा: रित्र ते इत्वर सामा० चा० कहेवाय, अने भरत अरवत क्षेत्रमा मध्यना २२ तीर्थकरना शासनयां अने महाविदेहमा सर्व मुनीओने प्रथमथीन महाव्रतनो आरोप छे. ने ते यावज्जीव सुधीनो होवाथी तेओनु ते चारित्र यावत्कथिक सामा० चा० कहेवायले
हवे बीजु छेदोपस्थापना चारित्र त्यां छेद एटले प्रथम जेटली मुदतनी लघु दीक्षा पाळी होय ते काळ दीक्षानो नहिं गणवो ते पूर्वपयोयनो छेद कहेवाय, अने उपस्थापना एटले पुन: महाव्रतनी स्थापना करवी ने त्यांथी दीक्षापर्याय ( दीक्षाकाळ ) नी गणत्री थाय एवी रीतनु जे पुनः चारित्र ग्रहण ते छेदोपस्थापना चारित्र कहेवाय, आ चारित्र भरत औरव्रतमा पहेला अने छल्ला तीर्थकरना शासनमा होय छे, ए चारित्रने लोकमां वडीदीक्षा लीधी कहे छे. ए चारित्र बे प्रकारनु छे. त्यां शिष्यने ज्यारे इत्वर सामायिक चारित्रनु आरोपण थाय (-वडोदीक्षा अपाय ) त्यारे अने एक जिनेश्वरना शासनन। मुनिने बीजा जिनेश्वरनुं शासन ( नुं चारित्र ) अङ्गीकार करवू होय ( जेमके पार्श्वनाथना शिष्यने म्हावीरस्वामिनुं शासन अंगीकार करवू होय ) ते वखते जे चार के पंचमहाव्रत रूप चारित्र धर्म अंगीकार करे ते निरतिचार छेदो