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________________ (२४८) || श्री नवश्वविस्तरार्थः ॥ वी) के जेथी नवां आवत कर्मोनुं रोकाण थाय. अवतरण - आ गायामां संवरतस्वमां आवेलां पांच चारित्रमांनां चार चारित्र कहे छे. || मूळ गाथा ३२ मी. ॥ सामाइत्थपढमं, बेओवट्ठावणं भवे बी । परिहारविसुद्धी, सुहुमं तह संपरायं च ॥ ३२ ॥ ॥ संस्कृतानुवादः । सामाधिकमथ प्रथमं, छेदोपस्थापनं भवेद् द्वितीयं । परिहारविशुद्धिकं, सूक्ष्मं तथा सांपरायिकं च ॥ १२ ॥ ॥ शब्दार्थः ॥ सामाइअ - सामायिक चारित्र | परिहार विसुद्धी अं-- परिहार अत्थ — अथ-- हवे विशुद्धि चारित्र पढमं- व्हेलु मृहुम-सूक्ष्म ओढावणं-छेदोपस्थापनचरित्र तह तथा भवे--छे बीयं - बीजुं संपरा - संपराय चवळी गाथार्थः - हवे ? लुं सामायिक चारित्र, अने बीज छेदोपस्थापन चारित्र है, तथा त्रीजुं परिहारविशुद्धी, अने ४ थुं सूक्ष्मसंपराय चारित्र छे, ------ विस्तरार्थः - हवे आ गाथामां पांच प्रकारतां चारित्र कहेछे सम एटले ज्ञान - दशन- चारित्रनो आयं - लाभ ते साय अने
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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