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________________ || संवरतये द्वादशभावनावर्णनम् ॥ (२४७) उंवा वाळेला कोडीआ सरखा आकारनो छे, मध्यलोक गोळ थाळी सरखो १८०० जोजन जाडो ने १ राज लांबो पहोलो के ने तेमां मनुष्य विर्यचनी तथा ८ वाणव्यन्तर पांच ज्योतिषीनी वस्ती तथा असंख्य द्वीप समुद्रवाको छे ऊर्ध्वलोक उभी करेली मृदं गना आकारवाळो छे. ने तेमां २६ वैमानिक देवोनी व स्ति छे, लोकाग्रे सिध्ध शिलापर शिद्ध परमात्माओ रहे छे, सर्व लोक १४ रज्जु प्रमाण उंचो ने लंबाई होळाइमां नीचे सात राज नेब्रह्मलोकने स्थाने पांच राज प्रमाण छे, लोकना मध्यमां १४ राज उंची ने ? राज लांबो व्होळी भुंगळी सरखी त्रस नाडीमांज त्रस जीवोनी वस्ती छे, शेष सर्वत्र पांच स्थावर जीवोनी वस्ति छे, लोकने कोइए बनाव्यो नवी के कोइए घरी राख्यो नथी परन्तु स्वभावतः छे. इत्यादि १४ राजलोकनुं स्वरूप चितववु ते लोकस्वभावभावना छे, जीवने समागमां भमतां अनन्त काळ थयो ते दरम्यानमां अ नन्तवार राजऋद्धि वगेरे सर्व वस्तु पाभ्यो, परन्तु सम्यक्त्व (-शुदेव गुरु धर्मनो श्रद्धा ) प्राप्ति यह नहि कारणके सम्पत्तव प्राति थवी आ जीवने महा दुर्लभ छे, बळी जीवने वैराग्यादि कारणथी द्रव्य चारित्र पण प्राप्त थाय छे, अनेक प्रकारनी कष्टक्रियाओ पण सुलभ थाय छे, परन्तु शुद्ध श्रद्धा थवी महा दुर्लभ थाय छे, इत्यादि स्वरूप चित ते बोधिदुर्लभ भावना, हवे कदाच महा कष्टे शुद्ध श्रद्धा थाय छे तो ते शुद्ध श्रद्धापूर्वक अरिहन्तनो कहेलो हेय ने उपादेयरूप श्रावकधर्म आचरखो महा मुश्केल छे, कहाँ छे के कथनो कथे सब कोय--रहणी अ ति दुर्लभ होय, इत्यादि स्वरूप चितवनुं ते धर्मदुर्लभ भावना ए उपर कहेली १२ भावनाओ प्रयत्नपूर्वक भाववी ( चिंत
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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