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________________ (२२२) ॥श्री नवतत्त्व विस्तरार्थः ॥ महाकष्ट पामीश, ए संबंधि विचार करधाथी मने अत्यंत उ दासिनता थइ छ माटे जो तु ऐक पण विद्या परभवना सुखनी अने मोक्ष प्राप्त करवानी विद्या भण्यो होत तो मने उदामीनता न होत. आर्थरक्षिते का हे माता ते का विद्या अने कोनी पामे मळे छे के जेथी मोक्षनो प्राति थाय. त्यारे माताप का के जो तारो मोरा वचनपर विश्वास होय अने तु भक्तिवाळी हो य तो स्वर्ग अने मोक्ष आपनार एघा दुष्टिवादनी अभ्याम शे. लडीनी वाडीमां पधारेला श्री तोस चीपत्राचार्य पासे कर. पुत्र विचायु के जे शास्त्रा भगवाथी माताने मन गीझd नथो तवां शास्त्रोवडे शु? एम विचारी तुर्त आज्ञा ल तामलीपुत्रावाय पासे चाल्यो, तेटलामा प्रभातकाळे प्रथम मलवाने उत्सुक गधा आयरक्षितना पितानी मित्र भेट तरीके ९ मांठा आग्वा अन एक सांठानो ककडो लइ आवी मामे मल्यो अने भेट करी, ते भेट स्वीकारी का के आ शेलड़ी तमो मारी माताने सोपजी अने हु कोइक कार्यार्थे बहार जाउं छ. ते पितामित्र ते शेलड़ी तेनी माताने सोंपी सर्व विगत कहेवाथी माताप विचाय के आ शेलडी शकुनमा मामी मली छे मादे मागे पुत्र जरूर ९॥ पूर्व जेटली विद्या भणशे. हवे आर्यरक्षित तोमलीपत्राचार्य पा जइ अभ्यास कराववानी विनंति करतां आचार्य का के जी दृष्टिवाद भणवू होय तो दीक्षा अंगीकार कर, त्यारे आयरक्षित कत्यु के आप मने दीक्षा आपो पण अहिं नगरना गजा--प्रजा सर्व मारी दीक्षा तोडावशे माटे अहिंथी त बीजे म्थाने चा. ल्याजवू ठीक छे. तोसलीपुत्राचार्य पण तुर्त तं आयरक्षितने साथे लइ अन्यत्र विहारकरी त्यां दीक्षा आपी. श्रीवीरना शा. सनमा ए प्रथम ज शिष्यदोरी थइ. त्यारवाद आयरक्षितने अगीयार अंग अने १२मुं दुटिवाद पाताना अभ्यास जंटलं मारी रीते भणाव्यु अने आगळ अभ्यास करवा माटे श्रीवनस्वामि पा. से मोकल्या त्यां जइ ९॥ पूर्व संपूर्ण अभ्यामकर्या आगट तंटली बुद्धिना अभावे कंटालो आववाथी अने पिताना उपगउपरी मंदेशा आववाथी अभ्याम न थयो.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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