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________________ || संवरतस्ये परिषवर्णनम् ॥ (२२३) हवे अहि आर्यरक्षितना पिताने सर्व समाचार मलत air संदेशा मोकल्या छतां पण पुत्र नहिं आववाथ फल्गुरfeat deer माटे मोकल्या. श्रीवज्रस्वामिप श्रुतोपयोग मूकी जाण्युके हवे आगल अभ्यास नहिं करी शके अने अहिं पुनः आवशे पण नहि जेथी मारी वधु विद्या मारी पासेज रही जशे. हवे आर्यरक्षितने प्रथम सूरिषद मल्युं छे. तेओ फल्गुनfastt area विहार करता पोताने नगरे आव्या त्यां आये. रक्षितना उपदेशाथी राजा अने नगरजनों पण अनन्य भक्तिवाला थया. माता रुद्रमीमा पण पुत्रआचार्यपासे घणा कुटुंब सहित दीक्षा लोधी, अने राजा सम्यक्त्ववत अङ्गीकार कयुं. पण पुत्री अने पुत्रवधू वगेरेनी आगल हुं नग्न सरखो / काछडो खोस्या बिना छूटे व ) केम उभो रहुं ? पवी लज्जाथी सोमदेवे दोक्षा लोधी नहि, पण निरन्तर उपासरेज रहे छे. आयरक्षिताचाये घणी उपदेश दीधो त्यारे सोमदेव पिताए कतु के जो जनोड-पगरखां-छत्री-पीतांबर - अने कमन्डल राखवानी आज्ञा आपोतो हुं दीक्षा लउ आचार्ये पण कोइरीते पिताने संसारथी तारवानी बुद्धि ते सर्व अनुज्ञा आपी दीक्षा अंगीकार करावी. अने त्यास्वाद केलांक बाळकोने युक्तिथी नमस्कार नहि करतां मरकरीओ करे अने उपदेश आपे तेवी युक्ति शीखवाडी धीरे धीरे सत्र चीजो छोडावी. आखरे पीतांबर रहा ते छोडावाने आचार्य युक्ति शोधे छे तेटलामां कोइक मुनि अणसण करी काळधर्म पास्या. ते वखते पितामुनिनु पीतांबर छोडावाने युक्ति रची क के आ मुनिने कांधे धरी लड़ जाय तो घणी निजंग थाय. ते लाभ लेवाने बीजा सर्व प्रथम शीखर्व गखेला मुनिओ अत्यन्त उत्सुकता धरी उठ्या. त्यारे सूरिए क क जो ए निज्जंगनो लाभ तम सर्व लइ जोओ तो अमारा पिता वगेरे बन्धुवर्ग शुं लाभ लइ शके ? एम कहेवाथी सोमदेवमुनिए पुत्रने पूछयं के, आ मुनिनी देह हुं जाते उपाडीश. त्यारे सूरिएक के, देहने उचकी लइ जतां भविष्यमां घणो वाळ उपसर्ग
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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