________________
॥ संवरतत्त्वे परिषहवर्णनम् ॥
(२२१)
वस्त्रमो सर्वथा अभाव होते अथवा तो जीर्णप्राय अने अल्प वस्त्र होते वस्त्र प्राप्तिनुं दीन चितवन न करवु ते अचेलक परिपह कहेवाय ( अहिं चेल एटले वस्त्र एवो अर्थ जाणवो, ) का छे के- “ अतिजीर्ण वस्त्र थयां छे ते फाटवाथी थोडा दिवसमां हुं वस्त्र विनानो थइश, अथवा मारा जीर्ण वस्त्र देखीने कोइ गृहस्थ नवां वस्त्र आपशे ए प्रमाणे दीन चितवन न करे पण आ जीर्ण वस्त्र जो फाटी जशे तो मने जिनकल्पी सरखु अचेलकपणुं प्राप्त थशे, अने जो नवां प्राप्त थशे तो स्थविरकल्पगत सचेलकपणुं प्राप्त थशे, बन्ने धर्मने हितकारी छे एम जाणी मुनि दीनता न करे. " . ळमां विनाशी शरीरवडे जो आ प्राणीओने तृप्ति थती होय तो एथी बीजु शु विशेष छे? ए प्रमाणे डांसनी अत्यंत पीडाने स. हन करता श्रमणभद्रमुनिए प्राणत्याग को. ए प्रमाणे अन्यमुनि तथा व्रतधारी श्रावकोए देशपरिषह सहन करवो. . १ दृष्टान्त:- दशपुरनगरमां सोमदेव नामनो ब्राह्मण अने रुद्रसोमा नामे तेनी स्त्री श्राविका छे, तेमने आयरक्षित अने फल्गरक्षित नामना बे पुत्र थया. त्यां आयरक्षित पितानी पासे विद्या भणी अधिक अभ्यास माटे पाटलीपत्र नगरे जइ वेदवेदांगादि चौद विद्याओ भणी दशपुरनगरे आव्यो ते वखते नगरना गजा अने नगरना लोकोए पण घणा आडंबरथी सा. मय करी नगरप्रवेश कराव्यो. पछी घेर ओवी पोतानी मा. ताने नमस्कार करवा गयो न्यारे माता अति उदासीन थइने बेठेत्री छे. पुत्र का हे मोता हु आटली विद्याओ भणी गजा वगेरेनु सन्मान मेळवी भेटणांनी अनर्गल लक्ष्मी प्राप्त करी हु तारी पासे नमस्कार करवा आव्यो छतां तु उदासी केम बनी गइ छ? माताए का हे पुत्र ! तु अनेक विद्याओ भण्यो पण ते मर्व ससारनी वृद्धि करनारी छे. अने तेथी तु परभवमां