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________________ (२२०) ॥श्री नवतत्वविस्तरार्थः ॥ डांस-मच्छर-मगतरां वगेरे क्षुद्र जंतुओए उपजावेली पीडा सम्यक् प्रकारे सहन करवी पण ते जीवोनुं अशुभ न चिंतवq ते दंसपरिषह कहेवाय. का छे के-" मच्छरादि जन्तुओ शरीरनुं मांस-रुधिर खाता होय तोपण उद्धेग न करवो, तेओने उडाडवा नहिं, मनथी पण तेओना पर द्वेष न लाववो, अने तेओने न ह. णवा परन्तु ते तरफ बेदरकार रहेवु" . श्चाताप करघा लाग्यो, अने नीचे उतरी माताने पगे लाग्यो, माता पण अरहन्नकने देखी तुरत शुद्धिमां आधी अने अनेक प्रकारनी शीखामण आपी फरीथी चारित्र अंगिकार कराव्यु. अरहन्नक मुनिए पण पुनः चारित्र अंगीकार करी उत्कृष्ट वैरा. ग्यवडे गुरुनी आज्ञा मागी नगर बहार ग्रीष्मऋतुना सख्त ता. पथी तपेली धगधगती शिलापर चारे शरण लइ पादपोपगमन अनशन अंगीकार कयु. अने पंच परमेष्टिनु स्मरण करता अ. रहन्नकमुनिनु शरीर एक मुहूर्त्तमात्रमा माखणना पिंडनी पेठे गळीगयु. अने काळ करी देवलोके गया. ए प्रमाणे अन्यमुनिए पण उष्णपरिषह सहन करवो. ' १ दृष्टान्तः-चंपानगरीमा जितशत्रुराजाना पुत्र श्रमणभद्रे श्रीधर्मघोषसूरि पासे चारित्र अंगीकार करीने उत्कृष्ट योग्यता मेळवी गुरुनी आज्ञापूर्वक एकाकी विहारप्रतिमा अंगिकार करो. हवे श्रमणभद्रमुनि विहार करता शरदऋतुना वखतमां कोइक महा अटवीनी अंदर रात्रे प्रतिमाए ( काउ०ध्याने ) रह्या छे, ते वखते सोय सरखा तीक्ष्ण मुखवाळा हजारो डांस तेमनी कोमळ कायाने लागी रुधीर पीवा लाग्या, जेथी मुनीनी स्वर्ण सरखी कायापण लोखंड सरखी काळी पडी गइ. उत्कृष्ट वैराग्यभावनावडे ते डांसने उराडया नहि, अने चिंतववा ला. ग्या के नरकनी उग्र पोडा आगळ आ डांसनी पीडा कइ गणत्रीमा छे ? वळी जीव अने शरीर ए बे भिन्न छे तो पछी अस्थिर शरीरमां ममत्व भाव शाथी ? वळी जो आ अल्पका
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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