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________________ ॥ संवरतत्वे समितिवर्णनम् ॥ (२१९) तो तमे पोतेज गोचरीए फरो, कारण के पितानी पेठे हरहमेश कोण गोचरी लावीने आपशे ? दाझ्या उपर डाम सरखां ए वचनो सांभळी अत्यंत दिलगीरीपूर्वक अरहन्नक मुनि बीजा मुनिओनी साथे भिक्षा लेवा माटे गया. कोइ पण घखते उपा. सराथी बहार नहिं निकळेला अरहन्नकमुनिने आ ग्रीष्मऋतुना तापमां घेर घेर फरी गोचरी लाववाना परिश्रमथो घणो खेद थयो. पग रेतीथी दाझे छे, मस्तक सूर्यथी तपी जाय छे, इ. त्यादि अनेक वेदनाथी व्याकुळ थइ गभराइ गयेला अरहन्नक मुनि बीजा मुनिओथी पाछळ रही कोइक शेठनी हवेली नीचे विसामो लेवा बेठा. ते घखते ते म्हेलनी स्वामिनी स्त्री के जेनो पति प्रथम मरण पाम्यो छे ते आ नवयुवाम अने कोमळ अंगघाळा रुपवान मुनिने जोइ कामातुर थइ दासी मोकलीने भिक्षाना मिषथी मुनिने म्हेल उपर पोतानी पासे बोलाव्या. अने अनेक प्रकारना उपायो करी मीठु मीठं बोली मुनीने पो. ताने आधीन कर्या. मुनि पण माधुपणाना कष्टथी कंटाळेला होवाथी आ स्त्री साथे गृहवास मांडी रह्या. हवे भिक्षाचर्याए निकळेला सर्व मुनिओए उपाश्रयमां आवी जए छे तो अरहन्नक मुनिने देख्या नही तेथी मुनिओए नगरमांसर्व ठेकाणे तपास करावतां पण अरहन्नकमुनिनो पत्तो लाग्यो नहिं, त्यारे अन्ते मुनिओए तेनी माता साध्वीने खबर मोकली के तमारो अरहन्नकमुनि क्यां छे ? ते मंबधि अमोए शोध करी छतां खबर मली नथो माटे तमो पण शोध कगवो. आ समाचार सांभळतामांज मा. ता माध्वी एकदम स्नेहना वशथी विलाप करती नगरमां हे अरहन्नक : हे अरहन्नक ! एम मो पाडती बजारे बजार गलीए गही अने घेरेघेर शोधवा निकळी, घणु फरी फरीने ज्यारे ते शेठाणीना म्हेल नीचे आवी त्यारे हे अरहन्नक ! हे अरहन्नक! पम वृमी पाडती साध्वीनो ने बीजा भेगा थयेला लोकोनो कोळाहळ गवाक्षमां बेठेला अरहन्नके नीचे देख्यो. अने मारी माता मारे माटे आवी दुर्दशामां आवी पडी छे एम चिंतवी पुनः वैगग्य उत्पन्न थयो, अने करेला अघोर कमनो अति प
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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