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|| श्री नवतश्वविस्तरार्थः ॥
( त्यागे - विसर्जे) ते उत्सर्गसमिति ( अथवा पारिष्ठापनिका समिति ) कहेवाय.
॥ ३ गुप्ति ॥
मनने सावध मार्गमांथी रोकी निरवय मार्गमा जोडनुं ते मनोगुप्ति ३ प्रकारनी है. त्यां आर्त्तध्यान अने रौद्रध्यान संबंधी मनोव्यापारनो स्याग करवो ते अकुशलनिर्वृत्ति रूप, धर्मध्यान अने शुक्लध्यानमा मनने प्रवतवितुं ते कुशलप्रवृत्तिरूप, अने मनोव्यापारनो सर्वथा ( केवलिपणामां योगनिरोध वखते ) त्याग करवो ते योगनिरोध रूप मनोगुप्ति कहेवाय.
तथा वचननो सावध व्यापार रोकी निरवद्य वचन बोलवु ते वचनगुप्ति ने प्रकारनी है. त्यां भूसंज्ञा- शिरकंपन - हस्तचालन इत्यादि संज्ञाओनो त्याग करी मौनपणु अङ्गीकार करते मीनावलंबिनी अने वाचना - पृच्छना - परिवर्तनादि वखते मुहपत्ति राखीने बोलवु ते वानियमिनी, कहेवाय.
शंका -- भाषासमिति अने वचनगुप्तिमांशु तफावत ? उत्तर - चनगुप्ति ते सर्वथा वचननिरोध करवारुप अने निरवद्यवचन बोलवारूप वे प्रकारनी है अने भाषासमिति तो निरवय वचन बोलवा रूप एक प्रकारनी है ए प्रमाणे तफावत छे. (इति aaaaaaa . )
कामवृत्तिने सावमार्गमांथी रोकी निरवद्यमार्गमां जोडवी ते काय गुप्ति वे प्रकारनी छे. त्यां उपसर्गादि होते छते पण कार्यो त्सर्गयी चलायमान न धनुं, अने केवलिने योगनिरोध वखते शरीरव्यापारनो सर्वथा त्याग थवो ते चेष्टानिर्वृत्ति रूप, अंने सिडाaari की विधि प्रमाणे कायानुं चलन - गमनागमनादि थाय ते यथासूत्रचेष्टा नियमिनी काय गुप्ति कहेवाय.