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॥ संवरतच्ये परिषहवर्णनम् ॥
(२१३)
अवतरण - २५ मी गाथामां परिषह सामान्यथी कला ते २२ परिषeri नाम कहेवाय के. तेमां पण आ गाथामां १४ परियह कहे ले
11 मूळ गाथा २७ मी. ॥
खुहा पिवाला सी उन्हें दंसा चेलारइत्थिओ | वरिया निसिहिया सिज्जा, अक्कोस वह जायण ॥२७॥ || संस्कृतानुवादः ॥
क्षुधा पिपासाशीतमुष्णं, देशोऽचेलकोऽरतिः स्त्रियः । चर्या नैषेधिक शय्या, आक्रोशो बधो याचना ॥ २७ ॥
| शब्दार्थः ॥
खुहा - धापरिषह
पिवासा - पिपासा परिसह
सी- शीत परिषह
उन्हें उष्ण परिषद
दंस- देश परिषह
अचेल - अचेलक परिषह (नग्न
परिषह )
अरइ अरति परिष
4-43
स्थिओ -- स्त्री परिषह
रिया -- पर्या परिषह निसिहिया - नैषेधिकी परिषह सिज्जा - शय्या परिषह अकोस-आक्रोश परिषह हवध परिषह जायणा - याचना परिषह
गाथार्थ:-- क्षुधापरि० - तृषापरि० - शीतपरि०- उष्णपरि० - दंशपरि० - अचलेकपरि० अतिपरि० स्त्रीपरि० - चर्यापरि० नैषेधिकपर० शय्यापरि० - आक्रोशपरि०-वधपरि०-याचनापरि०
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विस्तरार्ध - पूर्व गाथामा ५ समिति अने ३ गुप्तिनुं स्वरूप ह्या बाद हवे आ गाथाथी २२ परिषहनुं स्वरूप कहेवाय छे.