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॥ संवरतत्त्वे समितिवर्णनम् ॥ (२११) गाथार्थ:- ईर्यासमिति-भाषासमिति -एषणासमितिआदानभंडमत्तनिख्खेवणासमिति- अने उत्सर्गसमिति ( अथवा पारिष्ठापनिकासमिति ) ए पांचसमिति, तेमज वळी मनगुप्ति वचनगुप्ति अने कायगुप्ति ( ए आठ प्रवचनमाता) ते संघर तत्त्व छे ( अर्थात् ए ८थी कर्म रोकाय छे.) __ विस्तरार्थः- सम्यक उपयोगपूर्वक प्रवृत्ति ते समिति,अने सावधयोगथी निर्वृत्ति ते गुप्ति, नवां आवतां कर्मोंने रोकवामां साधनभूत छे. तेना उत्तरभेदन स्वरूप कहेवाय छे.
५ समिति आगळ युगमात्र ( हाथ ) भूमिने दृष्टिथी जोता अने बीजलीलोतरी-पाणी-तथा सजीव वगेरेथी सजीवभूमिने वर्मता मार्गमां चालवू ते ईसामति
जे वचन सत्य होय अने कहेवायोग्य होय वळी जे सत्य असत्यमिश्रित न होय, अने जे बुध्धिवडे विचारेलं होय, मधुर होय अल्प होय, कार्यप्रसंग वाळुज होय,गवरहित होय,टुंकारादितुच्छतारहित होय, म्वपरने हितकारी होय, मर्मवाळु न होय इत्यादि मोक्षमार्गने अनु. कूळ वचन बोलg ते भाषासामिति ____ सिद्धान्तमां कहेली विधि प्रमाणे ४२दुषणरहित आहारपाणी अंगीकार करवां ते एषणाममिति
प्रथम भूमीने चक्षुबडे जोइ प्रमार्जिने वस्त्रपात्रादिकने पण जोइ प्र. मार्जीने भूमिपर मुकवा अने लेवां ते आदान समिति (आदा. नभंडमत्तनिवेवणासमिति) प्रथम भूमिने चक्षुवडे जोइ प्रमार्जीने(निर्जीव जग्यामां) वडीनीति ( झाडो ) लघुनीति ( पेशाब ) श्लेष्म-थुक इत्यादि देहनिर्गत शुचिपदार्थ तेमज कोइकवखते वधेलाआहारपाणी इत्यादि परठवे