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________________ अवतरण - आ गाथामां संवरतच्वना ५७ भेद कहेवाय छे || मूळगाथा २५ मी 11 समिईगुत्तिपरिसह - जईधम्मो भावणा चरिताणि पणतिदुवी सदसवार पंचभेएहिं सगवन्ना ॥ २५ ॥ अथ संवरतव समिइ समिति गुति - गुप्ति परिसह - परिषह जहधम्मो यतिधर्म ॥ संस्कृतानुवादः ॥ समितिगुप्तिपरिषहयतिधर्माणि भावनाश्चारित्राणि पंचत्रिद्वाविंशतिदशद्वादशपञ्चभेदैः सप्तपञ्चाशत् ॥ २५ ॥ भावणा - भावना चरिताणि चारित्र पण - पांचभेट · शब्दार्थ ति-त्रणभेद दुवीस-बावीशभेद दस - दशभेद बार-बार भे पंच-पांच भेरfe - भेदवडे सगवन्ना - सत्तावनभेद गाथार्थ :- पांच समिति-त्रण गुप्ति-बावीश परिषह-१० यतिधर्म - १२ भावना ने पांच चारित्रनाभेदवडे संवरतस्वना ५० भेदले. विस्तरार्थः - - सम् - सम्यक उपयोगपूर्वक इति प्रवृत्ति ते समिति, तथा परि-समन्तात् सर्ववाजुथी अथवा सर्वप्रकारे
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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