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(२०८ - ख.)
|| नवतश्व विस्तरार्थः ॥
एकेन्द्रियमां ३० - दृष्टिकी क्रिया चक्षुदर्शनवाळा जीवने होय, प्रातीत्यकी, सामंतोपनिप्रातिकी, आनयनिकी, अने आज्ञाप्रयोगिकी ए चार क्रिया दीर्घकालिकी संज्ञावाळा वचनयोगीने होय, अने एकेन्द्रिय जीवमां चक्षुदर्शन अने वचनयोगनो अभाव होवाथी ए पांच क्रिया अने छठ्ठी ईर्ष्यापथिकी क्रिया तो पूर्वोक्त कारणथी न होय माटे १९ क्रिया होय छे. इन्द्रिय आश्रवमां १ स्पर्शनेन्द्रिय संबंधि आश्रव छे, कषाय ४ छे, अने योगमां १ काययोगाश्रव छे, अव्रत ५ छे माटे सर्व मळी ३० आश्रवभेद होय छे. द्वीन्द्रियमां ३२ – एकेन्द्रियमां जे ३० आश्रवभेद का तेमां १ रसनेन्द्रिय अने १ वचनयोग ए वे अधिक होवाथी द्वीन्द्रि यमां ३२ आश्रव होय छे..
त्रीन्द्रियमां ३३ - द्वीन्द्रियना ३२ आश्रवमां १ घ्राणेन्द्रियाश्रव अधिक करतां त्रीन्द्रियम ३३ आश्रवभेद होय. चतुरिन्द्रियमां ३५ - त्रीन्द्रियना ३३ आश्रवमां १ चक्षुरिन्द्रियाश्रव, अने दृष्टिकी क्रिया अधिक करतां ३५ आश्रवभेद चतुरिन्द्रियमां होय.
पंचेन्द्रियमां ४२ - पंचेन्द्रियमां गर्भजमनुष्यने सर्वे आश्रव भेद होय. पृथ्वीकायां ३० - - एकेन्द्रियवत्.
अपूकायम ३० - - एकेन्द्रियवत्. ते कायम ३० - एकेन्द्रियवत्. वायुकायम ३० - एकेन्द्रियवत. वनस्पतिकायम ३० - - एकेन्द्रियवत्. असकायम ४२ – मनुष्यगतिवत्.
॥ इत्याश्रवतत्त्वपरिशिष्टम् ॥