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________________ ॥ आश्रवपरिशिष्टम् ॥ (२०४-क.) आ प्रमाणे ठाणांगजी प्रज्ञापनाजी-नवतचभाष्य-विचारसारप्रकरण इत्यादि ग्रन्थोने आधारे क्रियाओगें वर्णन कर्यु. आ बेता. लोश आश्रवोनुं कर्मबन्धमां हेतुपणुं जाणी जेम बने तेम आश्रवस्थानोथी निवर्ती कर्मबन्धनथी अलग थq एज शास्त्रबोधनुं फल छे. ॥ आश्रवतत्त्वपरिशिष्टम् ॥ नरकगतिमा ४१-एक ईपिथिकी क्रिया विना शेष आश्रवना ४१ भेद नरकगतिमां होय छे. ईर्यापथिकी क्रिया केवळ योगप्रत्ययिक छ; अने. ते योग कपायरहित ११ मा गुणस्थानथी यथाख्यात चारित्र सद्भावे होय छे, तेवू यथाख्यात चारित्र नारकने होय नहिं माटे इर्यापथिकी क्रिया संबंधि आश्रव पण न होय जेथी ५ इन्द्रि य-४ कषाय-५ अव्रत-३ योग अने २४ क्रिया ए ४१ .. आश्रवभेद होय. तिर्यंचगतिमा ४१--नरकगतिवत. देवगतिमा ४१-नरकगतिवत्.. मनुष्यगतिमां ४२-यथाख्यात चारित्र मनुष्यगतिमां होय छे. माटे ते चारित्रना कारणथी केवळ योगप्रत्ययिक ईर्यापथिकी क्रिया पण होय छे जेथी मनुष्यगतिमां आश्रवना सर्व भेद ४२ होय.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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