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(२०८) श्री नवतत्व विस्तरार्थः ॥ बंधाय अने बीजे ममये वेदाय छे अने निर्जरे छ जेथी आइर्याप० कभनी स्थिति मात्र बे समयनीज छे अने अपायी जीवने एक शातावेदनीयन बंधाय छे बीजु कोइ कर्म बंधाय नहिं आ क्रिया वध्यमान अने वेद्यमान ए बे भेदथी बे प्रकारनो छे. त्यां प्रथम समये वध्यमान अने वीजे समये घेद्यमान जाणवी.ए प्रमाणे आश्रव तत्वना कहेला भेद घणाखरा एवा पण छे के स्थूल दृष्टिए परस्पर एक सरखा जणाय छे जेपके इन्द्रिय आश्रवमां चक्षुइन्द्रिय दृष्टिकी क्रियामां अने स्पर्शनेन्द्रिय स्पृष्टिकी क्रियामा अन्तर्गत थाय छे. चारे कपाय प्रेम प्रत्ययिकद्वेषप्रत्ययिक-प्राद्वेषिकी मायाप्रत्ययिकमां यथा योग्य अन्तर्गत था. य छे, तथा पांचे अव्रत सामान्यतः अप्रत्याख्यानिकी क्रियामां अने विशेषतः प्हेलं अत्रत प्राणातिपा० क्रियामां तथा पांच अव्रत प. रिग्रहिक क्रियामां समाय छ, त्रणे योग प्रायोगिकी क्रियामां समाय छे, ए प्रमाणे इन्द्रियादि पिंडभेद साथे क्रियाओ ते पण परस्पर साखी जणाय छे जेमके प्रायोगिकी क्रियामां कायिकी समाय छे. प्रादेषिकी अने द्वषप्रत्ययिकी एक सरखी जेवी छे इत्यादि रीते आ. श्रवतत्वना ४२ भेद सर्वे परस्पर भिन्न पडता नथी एम स्थूल द्रष्टिए भासे छे नोपण सूक्ष्म द्रष्टिए विचारतां सर्व भेदमां फेरफार मालुम पडे छे जेमके चक्षुन्द्रियनो आश्रव इन्द्रिय निमित्तक छे अने द्रष्टिकी क्रियानो आश्रय ते क्रिया निमित्तक छे इत्यादि परस्पर भेद मूक्ष्म बुधिए विचारवा. (इति नत० भा० )
पुनः प्रज्ञापनामूत्रमा कायिकी थी अप्रत्या० क्रियासुधीनी १० क्रियाा ये विभागमां (५-५ वर्णवेली छे, अने ठाणांगजी मां बेबे क्रियाओ जुदी जुदी वर्णवी छे, पुनः ठाणांगनीमां ए सर्वे क्रि याओने कर्मपुद्गलग्रहणना कारणनी मुख्यताए अजीवक्रियाओ कही छे. अने विचारसारमा जीवनापरिणामना मुख्यताए जीवक्रि. याओ कही छे, अने जीवनी तत्वश्रद्धान मिथ्या स्वभाव-मिश्रभावसम्यक्त्वभावे परिणति ते जीवक्रिया गणी छे.