________________
॥ आश्रवतत्त्वे योगवर्णनम् ॥
(२०७)
परना हितनी आकांक्षा-अपेक्षा रहित जे आलोक अने परलोक विरुद्ध एघु चोरी परस्त्रीगमनादि आचरण ते स्व अनवकांक्षा अने पर अनवकांक्षा एम बे प्रकारे छे, आ क्रिया वादरकषायोदयपत्ययिक होवाथी ९मा गुण० सुधी छे.
२१ प्रायोगिकी क्रिया - मन वचन अने कायाना शुभा. शुभ व्यापाररूप जे क्रिया ते प्रायो० क्रिया. आ क्रिया शुभाशुभ सावद्य योगवाळाने होवाथी ५ मा गुण० सुधी छे.
२२ समादान क्रिया--जेनाथी विषय समादीयते-ग्रहण कराय ते समादान एटले इन्द्रिय ते संबंधि देशघातक वा सर्वोपघानक जे व्यापार ते समादान क्रिया,अर्थात् जेनावडे आठे कम समुदाय पणे बंधाय तेवा प्रकारनो इन्द्रियनो व्यपारते समादानक्रिया अथवा सामुदायिकी क्रिया पण कहेवायछे आ क्रिया इन्द्रिय अप्रतवाला जीवोने होवाथी ५ गुण० सुधी होय छे.
२३ प्रमिकी क्रिया-- बीजा उपर प्रेम करवाथी अथवा बीजाने प्रेम उपजे एवां वचनादिथी जे कसंबंध थाय ते प्रेमिकी क्रिया. आ क्रिया लोभना उदय रूप होवाथी १०मा गुण० सुधी छे. ___ २४ द्वेषिकी क्रिया-- बीना जीवने क्रोध अने मानरूप द्वेष उपजे तेवा आचरणथी उत्पन्न थयेली ते, आ क्रिया बादर कषायोदयचाळाने होवाथी ९ मा गुण० सुधी छे.
२५ ईपिथिकी क्रिया--- इर्या एटले गमनागमनादि काययोग ( उपलक्षणथी वचन अने मनोयोग ) एज पथ- कर्म आववानो मार्ग तत्संबंधि जे क्रिया ते ईर्यापथिकी क्रिया. अर्थात मन वचन कायाना अकाषायिकयोयथी उत्पन्न थयेली क्रिया ते इर्याप० क्रिया आ क्रिया १९-१२-ने १३ मा गुण वाला अपायी जीवने योगमात्रथीज होय छे. आ योगमात्रथी बंधातुं सातावे० कर्म मनोहर वर्णगंधरसस्पर्शवाळ पण अतिरूक्ष हाय छे, जेथी प्रथम समये