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आश्रवतत्त्वे क्रियावर्णनम् ॥ (२०१) ___ अवतरण- आ गाथामां मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी वगेरे ८ क्रियाओ कहेवाय छे.
॥ मूळगाथा २३ मी ॥ मिच्छादसणवत्ती, अपञ्चक्खाणी य दिठि पुहिय। पाडुच्चिय सामंतो-वणीय नेसत्थि साहत्थी ।। २३॥
॥ संस्कृतानुवादः ॥ मिथ्यादर्शनपत्ययिकी अपत्याख्यानिकी च दृष्टिकीस्पृष्टिकी च पातित्यकी सामंतोपनिपातिकी नैशस्त्रिकी स्वास्तिकी २३
॥ शब्दार्थः ॥ मिच्छादसणवत्ती-मिथ्यादर्शन | पाडुचिय-मातित्यकी क्रिया
प्रत्ययिकी क्रिया | सामंतोवणीअ-सामंतोपनिपाअपञ्चक्रवाणी अप्रत्याख्यानि
तिकी क्रिया की क्रिया | नेसत्थि नैशस्त्रिकी (अथवाय-अने
__नैसृष्टिकी) दिट्ठी-दृष्टिकी क्रिया साहत्थी-स्वाहस्तिकी क्रिया पुट्ठी-स्पृष्टिकी क्रिया (वा पृष्टिकी)
गाथार्थ:- मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी, दृष्टिको, स्पृष्टिकी, प्रातित्यकी, सामंतोपनिपातिकी, नैशस्रिकी ( अथवा नैसृष्टिकी) अने स्वाहस्तिकी क्रिया.
विस्तरार्थ :
९ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया-जगतमा जे पदार्थों जे रूपे विद्यमान छे ते पदार्थोंने तेवरूपे न मानतां विपरीत रूपे माने ते मिथ्याद० प्र० क्रिया बे प्रकारनी छे, त्यां सत् पदार्थोंने सत् माने पण ते सत् पदार्थना केटलाएक गुणपर्यायने विपरीतपणे माने.