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________________ - - - - ॥ आश्रयतत्त्वे अवतवर्णनम् ॥ (१९३) स्वार्थने अंगे अथवा परना अहित माटे जे सत्य अथवा असत्य बोल ते बन्ने मृषायाद नामे बीजं अव्रत छे, (अहिं अप्रिय अने अहित वचन बन्ने मृषावाद छे. माटे चोरने चोर कहेवो तथा शिकारीए पूछतां देखेलां मृगादिकतुं कहे ते पण मृषावाद ज छे) फारणके स्वार्थने अंगे संसारमा सत्य बोलतां पण अशुभाश्रय छे, अदत्त-कोइए नहिं आपेली चीजर्नु आदान-ग्रहण करते अदत्तादान कहेवाय एमां ते वस्तुना मालिके नहिं अपिली वस्तु स्वामिअदत्त गणाय जीये राजी खुशीथी नहिं आपेली वस्तु जीबअदत्त. गुरुए आज्ञा नहिं आपेली वस्तु गुरुदत्त अने तीर्थकरे निषे. धकरेली वस्तु तीर्थकर अदत्त गणाय एमांनी कंइपण वस्तुनु ग्रहण करवू ने अदत्तादान गणाय निषेध करेल वस्तुने अंगीकार करवी विना पूछये लेवु, राज्य वगेरेना कायदाथी विरुद्ध वर्तन.करवू इत्यादिसर्व अदत्तादान गणाय , अब्रह्म-एटले अनाचारनु चर्म-सेवन करवू ते अब्रह्मचर्य नामे चोथु अव्रत छे, ते १८ प्रकारनुं छे, वैक्रिय (देवी) अने औदारिक ( मानुषी-अने तिचो ) ए बे प्रकारनी स्त्री साथे मन वचन अने कायावडे अब्रह्म करवू-कराव_-अने अनुमोदq ए त्रण जोग अने करणपूर्वक २४३४३१४८ भेद थाय _तथा धन धान्य सोनुं रुपुं क्षेत्र वस्तु वालण द्विपद ( दास दा. सी ] अने चतुष्पद ( गाय भैस बन्द हाथी वगेरे ) ए ९ प्र. कारनी वस्तुओनो जे संग्रह ते ९ प्रकारनो परिग्रह कहेवाय ते परिग्रह उपर जे ममत्वभाव ते परिग्रह नामे पांचमु अत्रत कहेवाय ए पांचे प्रकारनां.अवनयी शुभाशुभ कर्मर्नु आवयु थाय छे, एमां पण प्र. शस्ताप्रशस्तभावे शुभाशुभ कर्मनो आश्रय स्वबुद्धिए विचारवो, जेम के धन धान्यादि संसारवधक वस्तुओ पर ममत्व भावथी अशुभाश्रय
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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