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॥श्री नवतस्सविस्तरार्थः ।
कर्मनुं जेनावडे आवq थाय ते आश्व कहेवाय. हवे ते शुभाशुभ कर्मठे आगमन शाथो थाय छे, तें दर्शावाय छे. इन्द्रिय वर्णन प्राणसंबंधिगाथाना विवेचनमां करेलं छे, अने अहिं तो ते इन्द्रियोथी कर्मर्नु आगमन केवी रीते थाय ते कहेवाय छे.
शीत-उष्ण-स्निग्ध-रुक्ष-मृदु-कर्कश-लघु अने गुरु ए आठ स्पर्श स्पशेन्द्रियनो विषय छे. तेमां जे जे स्पर्श पोताने अनुकूळ होय ते ते स्पशवाळा पदार्थोनी प्राप्तिथी राजी ( रागी) थाय. अने प्रतिकूळ स्पशेवाळा पदार्थोनी प्राप्तिथी नाराज (द्वेषवाळो) थाय ए प्रमाणे ज्यारे स्पर्शेन्द्रियना विषयोमा राग द्वेषपणे आत्मा वर्ततो होय त्यारे कर्मनुं जे आवई थाय ते स्पर्शीन्द्रय संबंधि आश्रव गणाय
आम्ल (खाटो) मधुर-कषायेल (तूरो)-तिक्त एटले (तीखो) -अने कटु (कडबा] ए पांच रस रसनेन्द्रियनो विषय छे. त्यां अनुकूळ रसवाळा पदार्थापर रागवाळा अने प्रतिकूळ रसवाळा पदार्थों पर द्वेषवाळा थवाथी कर्मनुं जे आवई थाय ते रसनेन्द्रियाश्रव गणाय, ___ सुगंध अने दुर्गध एघ्राणेन्द्रियनो विषय छे, त्यां सुगंधी पदार्थों तेल फुलेल अत्तर वगेरे पामीने रागवाळो अने विष्ठादि दुर्गधवाळा पदार्थ पामाने आत्मा द्वेषवाळो थवाथी कमर्नु जे आवq थाय ते घ्राणेन्द्रियाव गणाय ___रक्त ( लाल-पीत (पीळो)-श्वत ( धोळो)-लीलो अने काळो ए पांच वर्ण ( रूप तथा आकार) ए चक्षु इन्द्रियनो विषय छे, त्यां मनोहर रंग रूप ने आकारवाळा पदार्थों पर रागभाव अने अमनाहर रंग रूप ने आकार वाळा पदार्थोपर टेप भाव थवाथी जे कर्मनु आववु थाय ते चक्षुरिन्द्रियाश्रव गंणाय, माटे ज नाटक